Wednesday, May 2, 2007

अध्याय-1


आज मोला अपन शिकार खेले के चाल बर अड़बड़ रिस लागत रिहिस। शिकार खोजे बर मोला सुरता नई ये, कौन दोखहा के मुँह ला देख के निकरे रहेंव। एखर ले आगू में हर अऊ कतकोन घांव शिकार खेले बर रूप-नगर के जंगल म आय रहेंव, फेर आज पहिली घांव हैरना ला कुदावत-कुदावत रद्दा ला भुला गेंव। दिन भर रद्दा ला खोजत रहेंव तबले रद्दा नईज पायेंव। तब हार खाके एक ठन रुख के छैंहा म बैठ गेंव।

जस-तस सांझ होत जाय मोर धुकधुकी बाढ़ते जाय। में डगर खोजत-खोजत हार खा गेंव। रथिया के अंधियार बाढ़त गईस, ओखर संगेसंग मोर मन म घलोक अंधियार लागे लगीस। हे भगवान। अब जौन होही तौन होही देखे जाही कहिके रुख ऊपर चढ़ गेंव। दिन भर के चरचरावत घाम के मारे मुरुकान करिया गेय रिहिस। देह तीप गेय रिहिस, मोला लागत रिहिस के जर चढ़ा लेय हावय। रुख ऊपर मोला पियास लागे लगीस फेर रुखा खाले उतरई घलोक हर एक ठिक डर के बुता रिहिस, अऊ पियास के मारे जी अबक-तबक होत रहीस। में विचारेंव के मरना तो हई हे फेर पानी के पियास में मरई मोर असन जुन्ना शिकारी बर लाज के गोठ आय। मेंहर पानी केसोर लगाय लगेंव।

अइसने बखत में सुर्रा चलीस। सुर्रा में रुख के गिरे पान पतई ह एती ले वोती उड़ाय लागीस। उखर उड़ावब के सोर हर अड़बड़ जोर से होईस जेमा मेंहर चमक गेंव। अऊ उही मेर के बड़े जान पथरा के ओधा म लुका गेंव। पान के खुट-खुट खार हे भगवान। आज रात भर मोला बचा ले। उहुं आज भगवान मोर नई सुनय।

पियास म जीव तलफला गे रीहिस। जीव के मोहला छोड़ के आघू कोती चलेंव। हुदुक ले हांसे के अऊ फुसुर-फुसुर गोठीयाय के सोर मिलीस। में चिचियांव। मोर हांथ के बंदूक हर नई जानव केती गिरीस अउ महुं भड़ाक ले भुइयां म गिर पड़ेंव। मोला सुरता नई रहीस के कब ले बिहिनिया होगे। मेंह उठेंव, ऐती ओती चकचकाय असन देखेंव। ऊहां जौन कुचु देखेंव उही हर मोर बर भगवान के देनगी बनगे।

ओहर आय एक ठिन मंदिर। ओला देखे ले लगिस के ओहर चंदा के अंजोर आय। मंदिर ला देखे ले लागिस के ओहर हाले के बने आय। मोर मन म मंदिर ला देख के आनंद होइस के अबउहां के पुजेरी हर रद्दा ला जरूर बता देही अऊ मोर मदत हो जाही।

मेहर ठाड़ होयेंव अऊ मंदिर के सिंग दुवारी मेर गेंव। जिहां सादा पथरा म करिया अक्षर म सुघर बनाय चरकोनिया पचरा देखेंव। लकठा म जाके पढ़ेंव। ओमा लिखाय रहिस “भौजी के मंदिर”। में कांही नई समझे सकेंव। वचारेंव के मंदिर के गोठ पुजेरी मेर ले जान सकहूं।

मंदिर के ओर छोर ला खोज डारेंव फेर पुजेरी के दरसन नई होईस त हार खाके मूर्ति पधराय रीहिस तौन ठोर म गयेंव। उहों कोनो पुजेरी नहीं रीहिस। मोला मंदिर ल सफ्फा सुथरा देख के अकचकासी लागीस के उहां कोनो मनसे नई राहंय अऊ एहर अतेक सफा कइसे हावय। मन म विचारेंव के जंगल के मंद म हावय तौन पाय के कोनो पुजेरी नइये।

मोर मन के बात मने म रीहिस के मोरधियान हर ओमेर राखे दिया म गईस। मोला अपन आंखी ऊपर विसवास नई होइस, फेर अविसवास करइ घलोक हर नई फबत रहिस काबर के दिया आघू में माढ़े रहिस हे अऊ कोनो अभीच्चे बुताय हावय तैसना धिंगया निकरत रीहिस। में हर ऐसना अचरज के बुता ला जादा बेर नई देखे सकेंव अऊ मंदिर के बाहिर निकल आयेंव।

बाहिर आये ले मोला रथिया के किस्सा धियान आईस वो हांसना, फुसुर-फुसुर गोठियाना अऊ फेर ये दिया। मोर रुंवा ठाड़ होगे अऊ पल्ला छोड़ा के भागे लागेंव। थोरकेच दुरिया भागे पाय रहेंव के पीछू कोती ले कोनो चिचियाइस – “ठाड़ हो तो बाबू” – “ए बाबू”। ओखर चिचियाइस ल सुनते मोला भरोसा होगे के कोनो तो मोर पीछू पर गेय हावय। मेंहर उहां के अटपट किस्सा के मारे पहिलीच ले डरा गेय रहेंव फेर पीछू कोती के हांक परइ ल सुन के रेहे-सहे तुध ला बिसरा डारेंव। मोला चक्कर असन आय लागिस अऊ फेर का होइस तेखर मोला कुछु सुध नईये।

मोर आंखी उघरिस तब मेंहर देखेंव मोला घेरे दु चार-जदिन गवंइहा मन बइठे हांवय। लकठा में बेठे मंडल ला पूछेंव – मंडल मेंहर केती हांवव ? तुम कोन आव अऊ मेंहर इहां कइसे आगेंव। वो मंडल ह किहिस – बैया तोला काल ओ कटकटावट जंगल कोती जावत देख के हमन जान डारेन के तेंहर कोनो शिकारी आस। फेर तेंहर जानत नई अस के आज ले कोनो ए जंगल में जाके जियतनइ लहुटे पांय। इहीला गुन के मेंहर तोला हांका पारेंव। फेर तेंहर ठाड़ होय के छांड़ अड़ड़ जोर से भागे लागेय। मेंहर भागत देखेंव तब ठाड़ होगेंव। थोकन भागेव अऊ गिर गेव। मोरह तुंहर तीर के जात ले तुमन सुध-बुध ला गंवा डारे रहेव। तहां ले मेंहर तुमनला इहां ले आनेंव। मेंहर इही गांव कुवरापुर के गौटियां आंव।

अपन चिन्हारी बता लिस तहां ले गौटियां हर मोर चिन्ह पहिचान पूछीस। महूं हर अपन चिन्हारी ल बतायेंव। मेंहर हक्का-बक्का रहि गेंव ओखर बताय ऊपर के मेंहर सहर ले पन्दरा कोस धुरिया आ गेय रहेंव। का मेंहर रथिया भर रेंगतेच रहेंव ?
गौटियां हर थोकन रहि के सहर पहुंचा देहूं किहिस अऊ बाहिर चल देइस। रथिया लथकेंच रहेंव, मोला नींद आय लागीस अऊ थोकन बेरा में सुत गेंव। थोरके बेरा में मोर नींद झकना के उचट गे। मोला सपना घलौक ओ पथरा में लिखाय “भौजी के मंदिर” हर जगा देइस। मेंहर चमक गेंव। मोला रथिया के जम्मो चीज हर जस के तस दिखे लागीस। वोहर हांसीस अऊ फुसफुसाइस “भौजी के मंदिर” अइसे त मेंहर जम्मो गोठ ला भुला जातेंव। कहि के विचारत रहेंव फेर ओ चरकोनिया सादा पथरा म लिखाय – “भौजी के मंदिर” हर मोर धियान ला रहि-रहि के अपनेच कोती लेग जाय। वो कोन “भौजी के मंदिर” आय। मोला ओहर सच्चा पिरीत के सुते चिन्हा असन लागत रीहिस। का मोला ओखर बिसे में कुचु जाने बर मिलही। फेर काखर मेर, हहो ठउका आय, गौटियां, मेंहर रेंग परेंव चौपार कोती।

मोला आवत देख के गौटियां हर ठाड़ होगे। अपन सौंजिया ला माचा लाने बर कीहिस। मेंहर मचिया ऊपर बइठ गयेंव। थोकन बेरा ले चुप्पे चुप बइठे रहेंव, फेर मोला त मंदिर के बिसे में जाने के सोंच राहय। मेंहर गौटियां मेर पूछेंव – कस गा बबा! एक बात तोर मेर पूछतेंव, का तेंहर सच बात ला बताय सकबे ? ओहर मोर कोती अकचकाय असन मुंहू ला बना लिस अऊ देखीस अऊ केहिस – बाबू जानत होहूं तब काबर नई बताहंव, का बात आय गोठिया न गा। मेंहर केहेंव – बबा ओ मंदिर...।

मोर गोठ नई पूरन पाइस अऊ ओहर कहि डारिस। उही दुलरवा के “भौजी के मंदिर” जौन हर जंगल के मंद मा इहां ले एक धाप म आज ले अम्मर होके ठाड़े हावय। मेंहर ओ मंदिर के आदि अंत सबौ ल जानत हावंव। इही आंखी में ओ हांसत खेलत खात घर ला बरबाद होवत देखे हावंव। ये मन हर ओ घर के बाहिर भीतरी सबो के गोठ ला अपन मेर सकेल राखे हावय जेमा के भुला झन जाय। दुलरवा अऊ डेरहा दुनों इही गांव म जनम लेय रिहिन। इहें फरीन अऊ इहें मेटागे। दुलरवा हर मोला अड़बड़ चाहय। ओखर सुरता हर आज ले मन ला रोनहुत कर देथे। ओखर सुर्री आदत (भाउकता) हर ओखर जिंदगी आय। ओहर ओला अपन मरत ले नई छांडिस। ये “भौजी के मंदिर” हर उही करमछड़हा के चिन्हा आय। ओला बखत हर चिन्हीस। तभे तो ओहर ए राच्छसी जनगी ले भगा गे। बबा अतक कहि तो डारिस फेर ओखर टोंटा हर भरभरा गे। आंखी मं आंसू डबडबा गे। ओहर आंसू ल रोके को कोसीस करिस अऊ कहिस, मोला सुरता हावय दुलरवा के जीयत ले का का गोठ होइस। मेंहर अपन के बात ल नई बताय सकत रहेंव झटके जान डारते अइसे लागत राहय तेला अड़बड़ उदिम करके ओला दबखत सबखत कहेंव – बबा, बता न गा दुलरवा कौन आय। बबा हर मोर कोती डबडबाय आंखी म देखीस। खखारखुखुर लीस अऊ केहे बर सुरु करिस...।
आज ले पच्चीस बच्छर आघू ए गांव हर मंदिर तीर ले रिहीस। जउन मेर आज मंदिर हावय तौने मेर एक ठन छोट कन दूमंजिल के घर रहिस। उहें दुलरवा के ददा गोपी बाबू हर राहय। छोट कर परवार रिहिस उन्खर, दू झिन बेटा अऊ एक झिन बेटी। ओमन अपन नानेचकुन परवार म आनंद राहंय।
मामूली खात-पीयत घर के होके घलोक ओहर पन बड़का बेटा डेरहा ला बी.ए. तक ले पढ़ाईस। डेरहा हर लकठा के मंदरसा में मास्टर हो गेय रिहिस। फेर दुलरवा के लैन हर दुसरेच रिहिस।
मोला बने सुरता हावय एक दिन मोला दुलरवा के ददा हर दुलरवा के आठ बरस के सब्बो किस्सा ला बताय रिहिस। दुलरना के जनम दिन में अड़बड़ खुसी मनाए रहीन। काबर के महाराज हर केहे रिहिस हे, अफसर बनही। घर के मनखे मन के आनंद के ठिकाना नई रहिस। डेरहा के जनम दिन म तो चना अऊ गुर बांटे रिहिन, दुलरना के जनम दिन म मिठाई बांटिन।
दुलरवा हर अपन जिंदगानी के 4-5 बच्छर त बड़ आनंद खुसी म काटीस। काबर के ओ समे वोहर ए मतलबा संनसार ला नई बूझए रिहिस। जिहां ले ओला थोर-थोर सनसार के सुध आईस उही दिन ले ओहर सनसार के नान-नान बात मन ला देख थथमथरा जाय। ओला अपन परवार ला छोड़ के भगा जाय के मन हो जाय।
मेंहर उन्खर लाटा फांदा गोठ ला नई समझे सकेंव अउ कहेंव – बाबा मेंहर त अभी ले तुलरवा के मन के गोठ ला नई समझे पायेंव। मोर ऊपर किरपा करके ओला झन लुका के राख। मोला वो लइका के सब्बो गोठ ला बतावव। आगू के किस्सा ला बता। ओहर किहिस, बने काहत हस बाबू महूंहर ओखर गोठ नई लुकावत अंव। तुमला सुना के मोर मन के बोझ हा हरू हो जाही। फेर कहे बर सुरु करीस।
दुलरवा के ददा गोपी बाबू हर दुलरवा ला अबड़ेच मया करय। ओहर काहय के भई दुलरवा मोर छोटे बेटा आय अऊ उही पाय के ओखर ऊपर मोर जादा मया हावय। फेर कहूं दुलरवा के चाल चलन हर बने रहितिस तो मय हर कइसनों मा घलोक अपन भाई मन मेर ले अलग होके गंवई म नई आय बर परतीस। मोला दुलरवा के संसो हावय, नई जानव कब ओखर सुध चढ़ही।
गोपीनाथ के गोठ ला सुनके मोला अबड़ेच दुख लागीस। मेंहर बिचारें लागेंव के दुलरववा म का औगुन हावय जेखर मारे गोपीनाथ बाबू ला अतेक संसो पर गेय हावय। मेंहर दुलरवा ला मका पाके समझाये के बिचारेंव।
दूसर दिन दुलरवा ला बलवायेंव। दुलरा महू ला अडबड़ मयारूक लागय। ओघर मन क ेबिचारब अऊ ओखर मउँह हर भगवान देनगी आय तैसन लागय। ओला देखके कोनों नई केरे सकतिन के ओखर म कांही औगुन होही, कका औगुन हो सकथे। मोर बलावा पाके ओहर आईस अउ कहिस – का बात ए कका। मेंहर कहेंव – दुलरवा गोपी हर आज तोर बिसे में कुछु बताइस हावय, मोला अबड़ेच पीरा होइस रे बाबू दुलरवा। तेंहर अपन बुढ़वा ददा ला काबर दुख देवत हावस रे ? का तोला ओ बुढ़वा ऊपर थोरको सोग नई लागय। दुलरवा रो डरीस। ओ किहिस – तेंहर मोर करमछड़हा जिन्दगानी के कांही गोठ नई जानत अस, न तो धियान गेहे। फेर जब तहुं हर मूंही ला दोस ललगावत हावंवतब मेंहर मोर बीते दिन के किस्सा ला बतावत हावंव। धियान देके सुन अऊ तिहीं हर फैसला कर के काखर दष आय।

दुलरवा हर अड़बड़ परवार के मनखे आय। दुलरवा जे दिन ले इसकूल जाए बर धरीस उही दिन ले ओखर मन हर मनटुटहा हो जाथे। ओहू हर अनफबीत गोठ के हो जाय ले।

दुलरवा हर इस्कूल लरे लउटे अऊ कका के दूकान म जाय तब उहें रोज बिलानागा एक पैसा ओला मिलय। फेर दुलरवा के कका के बेटा मन ला ऊंखर मन मांगे हिसाब म पैसा मिलय। दुलरवा के परवार के सब्बो खर्चा के भार कका जी ऊपर रहय। पहिली गोपीनाथ घलोक हर दुलरवा के खियाल नई करीस। कभू दुलरवा ला कांही जरूरी चीज लागय तब ओखर ददा हर ओला कका मन कोतीदेखा दय। दुलरवा ला अतका में खुसी नई होवय। गाबर गोपी बाबू हर भतीजा मन कोती जादा ध्यान देवय। अऊ ए हिसाब म दुलरवा के कका के बेटा मन ला दुहरी पैसा मिलय अऊ दुलरवा हर उंघनर मुँह देखत राहय। दुलरवा पहिली उंखर अइसना गोठ कोती जादा धियान नई देवय फेर जब उहु हर ए गोठ ला जाने समझे लगीस तब ओखरो मन मा इरसा के आगी धमके लागीस। तेखर फल ए होईस के एक दिन दुलरवा हर गोपी बाबू के खीसा ले चार आना चोरा लिस।

दुलरवा ला लागय जइसे कोनो ओला नई चाहंय। हो सकथे के एहर दुलरवा के नानपन होय। फेर एहर सिरतोन गोठ आय के लैका मन के नानपन के चाल ला बिन जाने समझे ऊंखर संग गलत ढंग ले बेवहार करेले फल हर खराबेच होथे।

दुलरवा के चाल हर रोज के रोज बिगड़तेच गईस। दुलरवा के मारे ऊहू ला जस अपजस के गोठ ला सहे बर परे लागीस। फेर दुलरवा महतारी के दुलरवा आय, अऊ ओहर अपन जीयत ले दुलरवा के बरोबर धियान राखीस।

जउन दुलरवा हर पहिली चार आना चोराय रिहीस तऊने दुलरवा के मन मा अब इरखा उऊ बलदा लेय के बिचार हर दिन-दिन जोर पकरे लागीस। अब ओहर ये करम म अऊ आगू बढ़गे। अब ओहर रुपया चोराय लगीस। दुलरवा हर अब घर वाला मन के बिचार मा भारी चोर होगे। सब्बो इही काहंय के अब एखर जिंदगानी अइसने कटही, एखर जीअई हर नई जीये के बरोबर आय।

मनखे हर कफू कखरो भागल ला पढ़े सकथे ? ओमन का जानत रिहिन के ओखरों दिन फिरही अऊ इही उजबक दुलरवा के सबे झिन मया करहीं। फेर ये बात हर सच आय के कोनों मनखे कतको खथराब होय, कोनो ओला बिचार के मारमार के सोज रद्दा देखाही तब ओ भूलाय मनखे घलोक हर अपने बर बने रद्दा निकालिच लिही। दुलरवा बिगड़िस कइसे- पियार के नइ पाये मा मन ला छोटे करके, नई तो ऊहू हर अपन रद्दा पहिली चले पा जातीस। ओला भुलवैया सब्बो रिहिन फेर रद्दा में लनइया कोनों नई रिहिन। सबो ला इही सन्सो राहय, ये अब का करे जाय। दुलरवा केददा के तब चेत चढ़िस जब बेचा हांथ ले निकल गेय रिहिस। कभू ओहर बिचारय के सायेद नानपन म अपन भरम लमझय अऊ मौका परे ले दुलरवा ला कड़ा ले कड़ा सजा देवय।

एक दिन दुलरवा ला घर ले निकाल दीन। महतारी ला माय लागीस ओहर चोरा के थोर बहुत रुपया ओखर मेर अरवाइस, अऊ कहवाइस के ओहर अपन ममा घर चल देवय।

दुलरवा अपन ममा के घर चल देईस। ओहा उहों जादा दिन नई रहे सकीस। दुलरवा परवार ल छोड़ के दुरिहा चल दीस तब ओखरो मन म अपन परवार के मया हर बाढ़िस अऊ ओहर जादा दिन अपन परवार ले दुरिहा नई रहे सकीस।

दुनिया मं जुग-जुग ले चले आवत अऊ कभू नई बिगड़ैया रिवाज आय के समय निकल जाय ले मनखे मन पछताथें। दुलरवा ला गेय थोरकेच दिन बीते पाय रिहिस, फेर दुलरवा के ददा ला अखरे लागीस। अतेक पान के ओहर खाय पीये बर छोड़ दिस। आखरी म दाई के बलाय ले दुलरवा फेर घर लहुट आइस। दुलरवा के घर म पांव देते कका गुसिया गे। ओहर कहिस के दुलरवा हर अब ए घर म नई रेहे सकय। गोपी बाबू ला अबड़ेच पीरा होइस अऊ ओमन इही गांव म आके, घर बवा के रेहे लगीन।

गोपीनाथ ला संझा बिहिनिया चारों पहर दुलरवा के सुरता लागे रहय, गुनय के का जानी आघू चलके येहर का करही ? फेर भगवान के मरजी, इहीच फिकर म गोपीनाथ हर सये संसार ले रेंग दीस। दुलरवा ला लागीस के ओखर बाप के मरे के कारन ऊही हर आय। ओखर अंतरआतमा हर ओला किहिस। ओहर मनेमन परतिग्या करिस के अब ओहर कभू चोरी नइ करय।

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