Wednesday, May 2, 2007

अध्याय – चार



दुलरवा के जिंदगानी के इही गोठ हा सब्बो के घर के गोठ बन गेय हावय। मेंहर त नई समझ पावंव। आखिस हांसे खाय के दिन मां ये दिन हा कहां ले आय। फेर घलोक गेय दिन हा एक ठन तिहार आय। इही दिन मनसे मन अपन मन के मइल ला निकाल के फैंक देथें। अऊ कहूं अइसना नई होतिस त मनखे झटकन मर जातिस। काबर के मन मा उठे बयार हा निकल जाथे अऊ एक-दूसर ला फेर मया करे लागते। उल्लूर परे बंधना हा फेर कसा जाथे। कहूं ओ बयार ला नई निकालय त ओहा मन मां रहिके दम ले सकत हे।

दुलरवा हा ठान लिस के ओहा भौजी ला कभू गलती बेवहार करके दुख नई होवन दय। भौजी के खुसी बर अपन मन के लालसा ला दबा दिस।

दुलरवा के बिहाव रमई कका के घर लगगे। येमन आंय तो साधारण खात पियत मनखे फेर अपन छोकरी मन ला पढ़ाई-लिखाई बर बने हरहिंछा छोड़ देय रिहिन। इंखर परवार हा विद्या के भंडार असन रिहिस। फेर विद्या के हरहिंछा के मारे सोनकुंवर के बिचार घलोक सुतंत्र हो गेय रिहिस। ओहा दूसर के भरोसा म जिअइला नई भाय सकत रिहिस। फे ओहर महतारी बाप के छोटे दुलौरिन बेटी आय। तऊन पाय के अबलेच मया मोह मां पले रहिस।

हां, त दुलरवा के बिहाव होगे। पहलीच रात के दुलरवा हा सोनकुंवर ला बताइस - ...सोनकुंवर तेंहर पढञे-लिखे समझदार हस। तोला सिख देवई हा बने नोहे, फेर तोला भौजी संग सच्चा पियार के बेवहार करे बर परही। ओला अपने महतारी बराबर मानबे अऊ ओहा जऊन बुता ला तिआरही तेला मोर तियारे आय समझके करे बर परही। सोनकुंवर तेंह ऐसे झन गुनबे के में हा तोला मया नई करंव। पेर मय हा सगर दिनेच भोजी के चाकर रहेंव। उही ला मोर असन गंवार ल सुधारे के बूता करे बर परिस हे। नई त ये दुलरवा हा आज नई जानंव कौन नरक मां सरत रहितिस। मोला भौजीच हा जिया दिस। सोनकुंवर हा दुलरवा के गोठ मां धियान नई दीस अऊ औ रात मा दुलरकवा हा सोनकुंवर के हहो नहीं ला नई समझे सकिस।

सोनकुंवर हा एक अठेरिया रिहिस, फेर नेंग असन ओला अपन मइके जाय बर परिस। सोनकुंवर हा जाय बर आघू दुलरवा मेर भेंट करे बर लौहाय रिहिस। अऊ ओती दुलरवा हा सोनकुंवर ला देखे बर तरसत रहिस। दूकान मां ओखर मन नई लागत रिहिस। ए दूनों झिन के तरसई के सोर कोनों ला नई रिहिस। फेर सच्चा पियार मां अतका बल होथे के ओहा बिन बताय चेहरा-मोहरा ले सबो झिन ल पता चल जाथे।

का होइस के दूकान मा एक झिन मनखए हा नून लेयबर आइस अऊ झोला ला देके कहिके चल दिस - भइया नून तउल के राख दे। मेंहा सागभाजी लेके आवत हंव। अऊ मनखे हा लहुट के आके अपन झोला ला मंगिस त ओहा ठाड़ सुखागे काबर के दुलरवा हा नुन छांड़ के ओखर बलदा मां दू सेर दार भर दय रिहिस। डेरहा के धियान ए कोती गिस। ओहा दुलरवा ला किहिस – दुलरवा तोला का हो गेय हावय। कहूं तोर देंह ह बने नइेय त घर जा, अऊ रमई कका ला टेसन अमरा देबे। काबर के हमर बैला-गाड़ी ला राधेबाबू ले गेय हावय।

दुलरवा हा झप के उठ गे फेर लजाके फेर उहीं मेर बइठ गे। तब डेरहा हा कहिस – जास काबर नई रे। दुलरवा कांही नई कहिस अऊ घर चल दिस।

दुलरवा हर घर पहुंचते देखिस के आघू मां भौजी ठाडे़ हावय। दुलरवा के उतरे मुंह ला देख के भौजी ह पूछिस – दुलरवा काये, देह बने नइये का ? अऊ भोजी हा दुलरवा के मुंह मं हांथ फिरोइस। दुलरवा हा सोनकुंवर मेर भेंट करे बर लहहाय रिहिस, फेर ओंखर भौजी के आघू ले उठे के हिम्मत नई होत रिहिस। काबर के येहा थोकन हलकापना असन लागथे के जौन भौजी ला ओहा दाई कहिथे ओखरे आघू मां सोनकुंवर...। दुलरवा बइठे रहिस।

रेल के बेरा होगे। रमई कका हा आके कहिस। अरे बडे़ बेटी अब काबर बेरा करत हव। रेल आय के बेरा त होगे। भौजी हा किहिस – हहो ठोका ताय, बेरा त कुछुके नइये। अऊ दुलरवा ला किहिस – दुलरवा जा बहू के संदूक ला उतार के ले आ। दुलरवा ह तुरते दौड़ीस। देखिस सोनकुंवर हा ओखर फोटु ला अपन छाती मां लगाय रोत रहिस। ओला अभोले नई जान परे रिहिस के ओकर पाछू मां दुलरवा ठाड़े हे। दुलरवा हा सोझे नई ठाड़े रही सकिस। ओहा झटकन संदूक ला उठाइस अऊ खाले लान के ठाड़ होगे। सोनकुंवर घलोक उतरिस। भौदजी के पांव परके ओहा टांगा मां बइठ गे। टांगा चले लगिस। दुलरवा ह बइठे तेखर पहिलिच रमई कका हा किहिस – बाबू चिट्ठी पत्री जरूर लिखहू। दुलरवा किहिस – चिट्ठी... हहां, हहो राजी खुसी के चिट्ठी। दुलरवा काहीं बैलय तेखर पहिलिच टांगा हा आघू रेंग गेय रिहिस। दुलरवा हा मन मां किहिस वाहरे जिपरहा डोकरा, तेहां मोला इही मेर ले बिदा कर देय, अऊ तोला मेंहर चिट्ठी लिखरूं।

दुलरवा के मन मां दुख रिहिस, फेर ओहा कोनो झन जानतीन कहिके गुनत रिहिस। एक दू दिन ओला सोनकुंवर के अडबड़ सुरता आइस। थोरकेच दिन बीते ले फेर ओहा अपन भइया भौजी के नांव जपे लगीस। ओला सोनकुंवर के मिलव हा सपना असन लागय।

येती सोनकुंवर हा घर पहुंचते चिट्ठी लिखिस। दुलरवा के हाथ मां जब चिट्ठी हा पहुंचिस त ओला पढ़े के ताकत नई चलिस। ओला ओहा खी सा मां धर लिस। काबर के डेरहा भइया ओ मेर बइठे रहिस।

दुलरवा हा बड़ परेशानी मां संझा के दरसन करिस। दूकान बंद कर के घर पहुंचिस अऊ सोझ अप खोली मां पहुंच गे। चिट्ठी ला पढ़े लागिस, ओला चिट्ठी मां अतेक मंजा आवत रिहिस। ये दुलरवा घलोक ठउका हे, रोज खाय बर देरी करथे, अपन संग मां ए चंडाल हा महूंला लांघन राखथे। दुलरवा हा चिट्ठी ला दसना में दाब के राख दिस। हांथ-गोड़ धोईस अऊ रंधनी घर मां पहुंचगे। काये भौजी, काये। मुसुवा कूदत हे पेट मां, अऊ गरीब ला गारी देत हस बिन कसूर के। ले परोस दे। भौजी हा दुलरवा बर खाय ल परसीस अऊ दुलरवा के आघू मां सरका दिस। ये काये, का तेंहा नई खावस। अरे खहूं नई त का तोहे गढ़न लांघन रहौं। तेंहा खा मेंहर थोकन बेरा ले खाहूं। दुलरवा ला काहीं समझ मं नई आत रिहिस। आखिर भौजी ला का होवत हे। दुलरवा हो डरिस – भौजी तेंहर अपन बर परस तभेच मेंहर खाहू ं। भौजी हा किहिस – अब मेंहर नहीं तोर दुलहिन हा तोर संग खाही। दुलरवा हा उठे लागय। अच्छा, बने हे, तेंहर खान नई दस तब नहींच सहीं। फेर भौजी ला वइसने ेबवहार करना परय। दुलरवा खावय मनटुटहा असन, अऊ भौजी घलोक।

दुलरवा हा खा के खटिया म लोटे रहाय। फेर ओला नींद नई आव। ओला भोजी के बदलई के मारे दुख लागय। हे भगवान तेंहर मोर बर का बिचारे हस, अरे बाता त दे, ये करमछंड़हा ला केती-केती धक्का खवा के जियाबे। पेर ये पथरा के छाती के, कहूं तेंहर मोला फेर ले दुख देय त मेंहर तोर हुकुम के बिना तोर दुवारी ला खटखटाहूं। मेंहर तोला अराम नई लेन दंव। बीस बछर ले त तेंहर मोला खेलौना बना के राखेय। फेर अब तेंहर मोरले नई खेले सकस, आखिर तोरो त छाती हे। अरे – तोर दरबार मां आके मेंहर तोरे आगू तोरे हिंता करव ये – हर बने बनही। थोरको त रस खा देउता मोर गरीब उप्पर...। दुलरवा रो डारय ओखर मन हल्का लागय अऊ ओहा हा सुत जाय।

दुलरवा मंझनिया घला खाय बर घर नई गईस। एती डेरहा हा खाय बर गिस त भौजी किहिस – दुलरवा ला भात खाय बर पठो देहव, ओरा चहा घला पी के नई गे हे। डेरहा हा दूकान मां पहुंचते दुलरवा ला खाय बर भेजिस।

भौजी, ये भौजी, अरे देना खाय बर भूख लागत हे। भौजी हा किहिस – आ गेय रे ऐंठुल, आज तेंहर चहा काबर नई पीए ? का तेंह गुनत रहे के महूं हा चहा झन पियंव। दुलरवा हा किहिस नई भौजी, भला मेंहा काबर अइसना चाहहूं। मेंहर त तुमनके मया मां बंधा के जीये सके हंव अऊ तुहीला लांघन राखे के मन... नई भौजी, नई, मेंहर अइसना कभूच नई गुने सकंव।

भौजी सच्ची बता आखिर तेंहर अइसना काबर गुन डारथस। भौजी हा किहिस – अच्छा चल पहिली खा त ले। दुलरवा खाय बर बइठिस। दुलरवा हा खातेचखात भौजी ला किहिस – भौजी मोला अइसे लागथे कहूं तेंहर मोला भूला देय त मेंहर कइसे जिए सकहूं, ये बिन ठिकाना के सनसार मां। फेर का तेंहर सबर दिन बर अपन ए गोड़ मां ठउर देय सकबे। काबर नहीं मेंहर तोला ओ बखत ले पहिलिच कहीं डारे हावं के मेंहर तोला अपन ले अलगे नई राखे सकंव, फेर कहूं तहींहा अलगे रहिहूं कहिबे त मोर का। नई भौजी, नई मेंहर तोरेच छांव मां अपन जिंदगानी ला पहा देहूं कहिके गुनथों अऊ भगवान, ला बिनोथंव के ओहर मोला भौजीच संग राखय। मोला सपना म घलोक अइसना झन दीखय के मोला भौजी ले अलगे होय बर परही।

येती सोनकुवर ला गेय छय महीना बीत गेय रिहिस। ये बीच मां सोनकुंवर के कई ठन चिट्ठी आइस। फेर दुलरवा हा एको ठन टिट्ठी के जवाब नई देय सकिस। सोनकुंवर के जम्मो चिटठी मां लिखे रिहिस के एक बेर तुमन आके अपन ऐ दासी ला दरसन देवव। मोला चौबीसों घंटा तुन्हर सुरता लागे रहिथे। तुमनला मोर किरीया है, अपत आहू। फेर दुलरवा हा ओती धियाने नई दिस, सोनकुंवर के गोठ कोती।

एक दिन उदुपहा तार आइस। लिखे रिहिस के दुलरवा ला झप के भेज दव। तार डेरहा ला मिलिस। ओहा दुलरवा ल झप ले जाए के तियारी करा दिस। दुलरवा हा ससुरार जाय बर िनकल परिस।

रेल अपन बेरा मा आगे। दुलरवा एक ठिन ठौर मां बइठ गे। येहा दुलरवा के पहिलीच मौका आय। अब ओहा थोक बहुत दिन बर भौजी मेर ले अलगे जात रिहिस। ओखर मन हा अभो भौजी के गोड़ में रिहिस। दुलरवा बिदा होईस तब भौजी के आंसू हा रुकतेच नई रिहिस।

संझा होइस। डेरहा हा दूकान बढ़ो के घर आइस। दुलरवा के भौजी ला दुवारी मा ठाड़े देख के अचंभा होइस। ओह किहिस – अरे आज का गोठये के तेंहर दुवार मेंरन ले आ गे हावस। भौजी हा मनटुटहा मन ले किहिस – का बतावंव, मोर दुलरवा हा ससुरार गे हे ना तऊने पाय के मोला घर हा सुन्ना लागत हे। डेरहा ठठा करिस – का बतावंव मोरो एको झन भौजी नई होइस, नई त महूं हा भौजी के मया पा के धन्न हो जातेंव। भौजी हा किहिस – टार तहूं घलोक हा, का उटपुटांग गोठ करत रहिथस।

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