Wednesday, May 2, 2007

परिचय

नाम
शिवशंकर शुक्ल

पिता
स्व. श्री गौरीशंकर शुक्ल

माता
स्व. सुभद्रा देवी शुक्ल

जन्म
8 दिसम्बर, 1932

शिक्षा
इंटरमीडियेट

पहली रचना
8 वर्ष की उम्र में इलाहाबाद से प्रकाशित बाल पत्रिका ‘विनोद’ में प्रकाशित

बाल रचनाएं
साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नंदन, रानी बिटिया, शेर बच्चा, शिव साहित्य एवं अनेक बाल पत्रिकाओं में प्रकाशित।

प्रथम उपन्यास
1958 ‘भाभी का मंदिर’ हिन्दी में।

द्वितीय उपन्यास
1964 ‘दियना के अंजोर’ छत्तीसगढ़ी भाषा का प्रथम उपन्यास।

तृतीय उपन्यास
1965 ‘मोंगरा’ छत्तीसगढ़ी भाषा में।

प्रथम कहानी
संकलन 1965 ‘रधिया’ छत्तीसगढ़ी भाषा में।

बाल साहित्य
‘डोकरी के कहिनी’ छत्तीसगढ़ी भाषा में। (पाँच भाग)
‘हाथी उड़ा आकाश’ हिन्दी में।
‘राजकुमारी नैना’ हिन्दी में।
‘अकल हे फेर पइसा नइये’ हिन्दी में।
‘दमांद बाबू दुलरू’ छत्तीसगढ़ी में


संपादन
सन 1955 से 1056 एक वर्ष तक छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका का प्रकाशन।


कहानियों का प्रकाशन
छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका लोकाक्षर, बिलासपुर, संकल्प रथ भोपाल, दैनिक महाकोशल, नवभारत, युगधर्म, दैनिक भास्कर, दैनिक नई दुनिया, देशबन्धु एवं हरिभूमि।

शुभकामना - पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी


वर्तमान युग सचमुच छत्तीसगढ़ के लिए भी नवजागरण काल हो गया है, छत्तीसगढ़ में नव-प्रतिभा का उन्मेष देख कर मुझे बड़ी प्रसन्नता होती है। साहित्य के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में छत्तीसगढ़ के तरुण साहित्यकार अपनी रचना-शक्ति का अच्छा परिचय दे रहे हैं। कुछ समय से छत्तीसगढ़ी भाषा को भी समुन्नत करने का स्तुत्य प्रयास हो रहा है। पं. शिवशंकर शुक्ल भी रायपुर के प्रतिभाशाली साहित्यकार हैं। उन्होंने छत्तीसगढ़ी भाषा में पहला उपन्यास लिखा है, उसका नाम है “दियना के अंजोर”। उसकी बड़ी प्रसिद्धि हुई। कितने ही विज्ञों ने उसकी बड़ी प्रशंसा की। “मोंगरा” उनका दूसरा उपन्यास है।

मेरी तो यही कामना है कि उनके द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा की श्रीवृद्धि हो और छत्तीसगढ़ की भी गौरववृद्धि हो


पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी

अद्वितीय प्रयास- हरि ठाकुर


छत्तीसगढ़ के तरुण कथाकारों में शिवशंकर शुक्ल का महत्वपूर्ण स्थान है। ‘भाभी का मंदिर’ उनका प्रकाशित उपन्यास है। पाठक वर्ग ने उसे पढ़ कर आनन्द प्राप्त किया है।

“दियना के अंजोर” लेखक की दूसरी कृति है। इस उपन्यास की भाषा छत्तीसगढ़ी है। गौरव की बात है कि छत्तीसगढ़ी का यह प्रथम उपन्यास है।

लेखक छत्तीसगढ़ी लोक-साहित्य के मर्मज्ञ हैं। छत्तीसगढ़ी लोक-कथाओं का संकलन भी शीघ्र प्रकाश में आ रहा है।

छत्तीसगढ़ी के प्रथम उपन्यासकार के रूप में लेखक का यह अद्वितीय प्रयास सर्वथा प्रशंसनीय है।

हरि ठाकुर
भूतपूर्व अध्यक्ष
छत्तीसगढ़ व. हिन्दी साहित्य सम्मेलन

अध्याय-1


आज मोला अपन शिकार खेले के चाल बर अड़बड़ रिस लागत रिहिस। शिकार खोजे बर मोला सुरता नई ये, कौन दोखहा के मुँह ला देख के निकरे रहेंव। एखर ले आगू में हर अऊ कतकोन घांव शिकार खेले बर रूप-नगर के जंगल म आय रहेंव, फेर आज पहिली घांव हैरना ला कुदावत-कुदावत रद्दा ला भुला गेंव। दिन भर रद्दा ला खोजत रहेंव तबले रद्दा नईज पायेंव। तब हार खाके एक ठन रुख के छैंहा म बैठ गेंव।

जस-तस सांझ होत जाय मोर धुकधुकी बाढ़ते जाय। में डगर खोजत-खोजत हार खा गेंव। रथिया के अंधियार बाढ़त गईस, ओखर संगेसंग मोर मन म घलोक अंधियार लागे लगीस। हे भगवान। अब जौन होही तौन होही देखे जाही कहिके रुख ऊपर चढ़ गेंव। दिन भर के चरचरावत घाम के मारे मुरुकान करिया गेय रिहिस। देह तीप गेय रिहिस, मोला लागत रिहिस के जर चढ़ा लेय हावय। रुख ऊपर मोला पियास लागे लगीस फेर रुखा खाले उतरई घलोक हर एक ठिक डर के बुता रिहिस, अऊ पियास के मारे जी अबक-तबक होत रहीस। में विचारेंव के मरना तो हई हे फेर पानी के पियास में मरई मोर असन जुन्ना शिकारी बर लाज के गोठ आय। मेंहर पानी केसोर लगाय लगेंव।

अइसने बखत में सुर्रा चलीस। सुर्रा में रुख के गिरे पान पतई ह एती ले वोती उड़ाय लागीस। उखर उड़ावब के सोर हर अड़बड़ जोर से होईस जेमा मेंहर चमक गेंव। अऊ उही मेर के बड़े जान पथरा के ओधा म लुका गेंव। पान के खुट-खुट खार हे भगवान। आज रात भर मोला बचा ले। उहुं आज भगवान मोर नई सुनय।

पियास म जीव तलफला गे रीहिस। जीव के मोहला छोड़ के आघू कोती चलेंव। हुदुक ले हांसे के अऊ फुसुर-फुसुर गोठीयाय के सोर मिलीस। में चिचियांव। मोर हांथ के बंदूक हर नई जानव केती गिरीस अउ महुं भड़ाक ले भुइयां म गिर पड़ेंव। मोला सुरता नई रहीस के कब ले बिहिनिया होगे। मेंह उठेंव, ऐती ओती चकचकाय असन देखेंव। ऊहां जौन कुचु देखेंव उही हर मोर बर भगवान के देनगी बनगे।

ओहर आय एक ठिन मंदिर। ओला देखे ले लगिस के ओहर चंदा के अंजोर आय। मंदिर ला देखे ले लागिस के ओहर हाले के बने आय। मोर मन म मंदिर ला देख के आनंद होइस के अबउहां के पुजेरी हर रद्दा ला जरूर बता देही अऊ मोर मदत हो जाही।

मेहर ठाड़ होयेंव अऊ मंदिर के सिंग दुवारी मेर गेंव। जिहां सादा पथरा म करिया अक्षर म सुघर बनाय चरकोनिया पचरा देखेंव। लकठा म जाके पढ़ेंव। ओमा लिखाय रहिस “भौजी के मंदिर”। में कांही नई समझे सकेंव। वचारेंव के मंदिर के गोठ पुजेरी मेर ले जान सकहूं।

मंदिर के ओर छोर ला खोज डारेंव फेर पुजेरी के दरसन नई होईस त हार खाके मूर्ति पधराय रीहिस तौन ठोर म गयेंव। उहों कोनो पुजेरी नहीं रीहिस। मोला मंदिर ल सफ्फा सुथरा देख के अकचकासी लागीस के उहां कोनो मनसे नई राहंय अऊ एहर अतेक सफा कइसे हावय। मन म विचारेंव के जंगल के मंद म हावय तौन पाय के कोनो पुजेरी नइये।

मोर मन के बात मने म रीहिस के मोरधियान हर ओमेर राखे दिया म गईस। मोला अपन आंखी ऊपर विसवास नई होइस, फेर अविसवास करइ घलोक हर नई फबत रहिस काबर के दिया आघू में माढ़े रहिस हे अऊ कोनो अभीच्चे बुताय हावय तैसना धिंगया निकरत रीहिस। में हर ऐसना अचरज के बुता ला जादा बेर नई देखे सकेंव अऊ मंदिर के बाहिर निकल आयेंव।

बाहिर आये ले मोला रथिया के किस्सा धियान आईस वो हांसना, फुसुर-फुसुर गोठियाना अऊ फेर ये दिया। मोर रुंवा ठाड़ होगे अऊ पल्ला छोड़ा के भागे लागेंव। थोरकेच दुरिया भागे पाय रहेंव के पीछू कोती ले कोनो चिचियाइस – “ठाड़ हो तो बाबू” – “ए बाबू”। ओखर चिचियाइस ल सुनते मोला भरोसा होगे के कोनो तो मोर पीछू पर गेय हावय। मेंहर उहां के अटपट किस्सा के मारे पहिलीच ले डरा गेय रहेंव फेर पीछू कोती के हांक परइ ल सुन के रेहे-सहे तुध ला बिसरा डारेंव। मोला चक्कर असन आय लागिस अऊ फेर का होइस तेखर मोला कुछु सुध नईये।

मोर आंखी उघरिस तब मेंहर देखेंव मोला घेरे दु चार-जदिन गवंइहा मन बइठे हांवय। लकठा में बेठे मंडल ला पूछेंव – मंडल मेंहर केती हांवव ? तुम कोन आव अऊ मेंहर इहां कइसे आगेंव। वो मंडल ह किहिस – बैया तोला काल ओ कटकटावट जंगल कोती जावत देख के हमन जान डारेन के तेंहर कोनो शिकारी आस। फेर तेंहर जानत नई अस के आज ले कोनो ए जंगल में जाके जियतनइ लहुटे पांय। इहीला गुन के मेंहर तोला हांका पारेंव। फेर तेंहर ठाड़ होय के छांड़ अड़ड़ जोर से भागे लागेय। मेंहर भागत देखेंव तब ठाड़ होगेंव। थोकन भागेव अऊ गिर गेव। मोरह तुंहर तीर के जात ले तुमन सुध-बुध ला गंवा डारे रहेव। तहां ले मेंहर तुमनला इहां ले आनेंव। मेंहर इही गांव कुवरापुर के गौटियां आंव।

अपन चिन्हारी बता लिस तहां ले गौटियां हर मोर चिन्ह पहिचान पूछीस। महूं हर अपन चिन्हारी ल बतायेंव। मेंहर हक्का-बक्का रहि गेंव ओखर बताय ऊपर के मेंहर सहर ले पन्दरा कोस धुरिया आ गेय रहेंव। का मेंहर रथिया भर रेंगतेच रहेंव ?
गौटियां हर थोकन रहि के सहर पहुंचा देहूं किहिस अऊ बाहिर चल देइस। रथिया लथकेंच रहेंव, मोला नींद आय लागीस अऊ थोकन बेरा में सुत गेंव। थोरके बेरा में मोर नींद झकना के उचट गे। मोला सपना घलौक ओ पथरा में लिखाय “भौजी के मंदिर” हर जगा देइस। मेंहर चमक गेंव। मोला रथिया के जम्मो चीज हर जस के तस दिखे लागीस। वोहर हांसीस अऊ फुसफुसाइस “भौजी के मंदिर” अइसे त मेंहर जम्मो गोठ ला भुला जातेंव। कहि के विचारत रहेंव फेर ओ चरकोनिया सादा पथरा म लिखाय – “भौजी के मंदिर” हर मोर धियान ला रहि-रहि के अपनेच कोती लेग जाय। वो कोन “भौजी के मंदिर” आय। मोला ओहर सच्चा पिरीत के सुते चिन्हा असन लागत रीहिस। का मोला ओखर बिसे में कुचु जाने बर मिलही। फेर काखर मेर, हहो ठउका आय, गौटियां, मेंहर रेंग परेंव चौपार कोती।

मोला आवत देख के गौटियां हर ठाड़ होगे। अपन सौंजिया ला माचा लाने बर कीहिस। मेंहर मचिया ऊपर बइठ गयेंव। थोकन बेरा ले चुप्पे चुप बइठे रहेंव, फेर मोला त मंदिर के बिसे में जाने के सोंच राहय। मेंहर गौटियां मेर पूछेंव – कस गा बबा! एक बात तोर मेर पूछतेंव, का तेंहर सच बात ला बताय सकबे ? ओहर मोर कोती अकचकाय असन मुंहू ला बना लिस अऊ देखीस अऊ केहिस – बाबू जानत होहूं तब काबर नई बताहंव, का बात आय गोठिया न गा। मेंहर केहेंव – बबा ओ मंदिर...।

मोर गोठ नई पूरन पाइस अऊ ओहर कहि डारिस। उही दुलरवा के “भौजी के मंदिर” जौन हर जंगल के मंद मा इहां ले एक धाप म आज ले अम्मर होके ठाड़े हावय। मेंहर ओ मंदिर के आदि अंत सबौ ल जानत हावंव। इही आंखी में ओ हांसत खेलत खात घर ला बरबाद होवत देखे हावंव। ये मन हर ओ घर के बाहिर भीतरी सबो के गोठ ला अपन मेर सकेल राखे हावय जेमा के भुला झन जाय। दुलरवा अऊ डेरहा दुनों इही गांव म जनम लेय रिहिन। इहें फरीन अऊ इहें मेटागे। दुलरवा हर मोला अड़बड़ चाहय। ओखर सुरता हर आज ले मन ला रोनहुत कर देथे। ओखर सुर्री आदत (भाउकता) हर ओखर जिंदगी आय। ओहर ओला अपन मरत ले नई छांडिस। ये “भौजी के मंदिर” हर उही करमछड़हा के चिन्हा आय। ओला बखत हर चिन्हीस। तभे तो ओहर ए राच्छसी जनगी ले भगा गे। बबा अतक कहि तो डारिस फेर ओखर टोंटा हर भरभरा गे। आंखी मं आंसू डबडबा गे। ओहर आंसू ल रोके को कोसीस करिस अऊ कहिस, मोला सुरता हावय दुलरवा के जीयत ले का का गोठ होइस। मेंहर अपन के बात ल नई बताय सकत रहेंव झटके जान डारते अइसे लागत राहय तेला अड़बड़ उदिम करके ओला दबखत सबखत कहेंव – बबा, बता न गा दुलरवा कौन आय। बबा हर मोर कोती डबडबाय आंखी म देखीस। खखारखुखुर लीस अऊ केहे बर सुरु करिस...।
आज ले पच्चीस बच्छर आघू ए गांव हर मंदिर तीर ले रिहीस। जउन मेर आज मंदिर हावय तौने मेर एक ठन छोट कन दूमंजिल के घर रहिस। उहें दुलरवा के ददा गोपी बाबू हर राहय। छोट कर परवार रिहिस उन्खर, दू झिन बेटा अऊ एक झिन बेटी। ओमन अपन नानेचकुन परवार म आनंद राहंय।
मामूली खात-पीयत घर के होके घलोक ओहर पन बड़का बेटा डेरहा ला बी.ए. तक ले पढ़ाईस। डेरहा हर लकठा के मंदरसा में मास्टर हो गेय रिहिस। फेर दुलरवा के लैन हर दुसरेच रिहिस।
मोला बने सुरता हावय एक दिन मोला दुलरवा के ददा हर दुलरवा के आठ बरस के सब्बो किस्सा ला बताय रिहिस। दुलरना के जनम दिन में अड़बड़ खुसी मनाए रहीन। काबर के महाराज हर केहे रिहिस हे, अफसर बनही। घर के मनखे मन के आनंद के ठिकाना नई रहिस। डेरहा के जनम दिन म तो चना अऊ गुर बांटे रिहिन, दुलरना के जनम दिन म मिठाई बांटिन।
दुलरवा हर अपन जिंदगानी के 4-5 बच्छर त बड़ आनंद खुसी म काटीस। काबर के ओ समे वोहर ए मतलबा संनसार ला नई बूझए रिहिस। जिहां ले ओला थोर-थोर सनसार के सुध आईस उही दिन ले ओहर सनसार के नान-नान बात मन ला देख थथमथरा जाय। ओला अपन परवार ला छोड़ के भगा जाय के मन हो जाय।
मेंहर उन्खर लाटा फांदा गोठ ला नई समझे सकेंव अउ कहेंव – बाबा मेंहर त अभी ले तुलरवा के मन के गोठ ला नई समझे पायेंव। मोर ऊपर किरपा करके ओला झन लुका के राख। मोला वो लइका के सब्बो गोठ ला बतावव। आगू के किस्सा ला बता। ओहर किहिस, बने काहत हस बाबू महूंहर ओखर गोठ नई लुकावत अंव। तुमला सुना के मोर मन के बोझ हा हरू हो जाही। फेर कहे बर सुरु करीस।
दुलरवा के ददा गोपी बाबू हर दुलरवा ला अबड़ेच मया करय। ओहर काहय के भई दुलरवा मोर छोटे बेटा आय अऊ उही पाय के ओखर ऊपर मोर जादा मया हावय। फेर कहूं दुलरवा के चाल चलन हर बने रहितिस तो मय हर कइसनों मा घलोक अपन भाई मन मेर ले अलग होके गंवई म नई आय बर परतीस। मोला दुलरवा के संसो हावय, नई जानव कब ओखर सुध चढ़ही।
गोपीनाथ के गोठ ला सुनके मोला अबड़ेच दुख लागीस। मेंहर बिचारें लागेंव के दुलरववा म का औगुन हावय जेखर मारे गोपीनाथ बाबू ला अतेक संसो पर गेय हावय। मेंहर दुलरवा ला मका पाके समझाये के बिचारेंव।
दूसर दिन दुलरवा ला बलवायेंव। दुलरा महू ला अडबड़ मयारूक लागय। ओघर मन क ेबिचारब अऊ ओखर मउँह हर भगवान देनगी आय तैसन लागय। ओला देखके कोनों नई केरे सकतिन के ओखर म कांही औगुन होही, कका औगुन हो सकथे। मोर बलावा पाके ओहर आईस अउ कहिस – का बात ए कका। मेंहर कहेंव – दुलरवा गोपी हर आज तोर बिसे में कुछु बताइस हावय, मोला अबड़ेच पीरा होइस रे बाबू दुलरवा। तेंहर अपन बुढ़वा ददा ला काबर दुख देवत हावस रे ? का तोला ओ बुढ़वा ऊपर थोरको सोग नई लागय। दुलरवा रो डरीस। ओ किहिस – तेंहर मोर करमछड़हा जिन्दगानी के कांही गोठ नई जानत अस, न तो धियान गेहे। फेर जब तहुं हर मूंही ला दोस ललगावत हावंवतब मेंहर मोर बीते दिन के किस्सा ला बतावत हावंव। धियान देके सुन अऊ तिहीं हर फैसला कर के काखर दष आय।

दुलरवा हर अड़बड़ परवार के मनखे आय। दुलरवा जे दिन ले इसकूल जाए बर धरीस उही दिन ले ओखर मन हर मनटुटहा हो जाथे। ओहू हर अनफबीत गोठ के हो जाय ले।

दुलरवा हर इस्कूल लरे लउटे अऊ कका के दूकान म जाय तब उहें रोज बिलानागा एक पैसा ओला मिलय। फेर दुलरवा के कका के बेटा मन ला ऊंखर मन मांगे हिसाब म पैसा मिलय। दुलरवा के परवार के सब्बो खर्चा के भार कका जी ऊपर रहय। पहिली गोपीनाथ घलोक हर दुलरवा के खियाल नई करीस। कभू दुलरवा ला कांही जरूरी चीज लागय तब ओखर ददा हर ओला कका मन कोतीदेखा दय। दुलरवा ला अतका में खुसी नई होवय। गाबर गोपी बाबू हर भतीजा मन कोती जादा ध्यान देवय। अऊ ए हिसाब म दुलरवा के कका के बेटा मन ला दुहरी पैसा मिलय अऊ दुलरवा हर उंघनर मुँह देखत राहय। दुलरवा पहिली उंखर अइसना गोठ कोती जादा धियान नई देवय फेर जब उहु हर ए गोठ ला जाने समझे लगीस तब ओखरो मन मा इरसा के आगी धमके लागीस। तेखर फल ए होईस के एक दिन दुलरवा हर गोपी बाबू के खीसा ले चार आना चोरा लिस।

दुलरवा ला लागय जइसे कोनो ओला नई चाहंय। हो सकथे के एहर दुलरवा के नानपन होय। फेर एहर सिरतोन गोठ आय के लैका मन के नानपन के चाल ला बिन जाने समझे ऊंखर संग गलत ढंग ले बेवहार करेले फल हर खराबेच होथे।

दुलरवा के चाल हर रोज के रोज बिगड़तेच गईस। दुलरवा के मारे ऊहू ला जस अपजस के गोठ ला सहे बर परे लागीस। फेर दुलरवा महतारी के दुलरवा आय, अऊ ओहर अपन जीयत ले दुलरवा के बरोबर धियान राखीस।

जउन दुलरवा हर पहिली चार आना चोराय रिहीस तऊने दुलरवा के मन मा अब इरखा उऊ बलदा लेय के बिचार हर दिन-दिन जोर पकरे लागीस। अब ओहर ये करम म अऊ आगू बढ़गे। अब ओहर रुपया चोराय लगीस। दुलरवा हर अब घर वाला मन के बिचार मा भारी चोर होगे। सब्बो इही काहंय के अब एखर जिंदगानी अइसने कटही, एखर जीअई हर नई जीये के बरोबर आय।

मनखे हर कफू कखरो भागल ला पढ़े सकथे ? ओमन का जानत रिहिन के ओखरों दिन फिरही अऊ इही उजबक दुलरवा के सबे झिन मया करहीं। फेर ये बात हर सच आय के कोनों मनखे कतको खथराब होय, कोनो ओला बिचार के मारमार के सोज रद्दा देखाही तब ओ भूलाय मनखे घलोक हर अपने बर बने रद्दा निकालिच लिही। दुलरवा बिगड़िस कइसे- पियार के नइ पाये मा मन ला छोटे करके, नई तो ऊहू हर अपन रद्दा पहिली चले पा जातीस। ओला भुलवैया सब्बो रिहिन फेर रद्दा में लनइया कोनों नई रिहिन। सबो ला इही सन्सो राहय, ये अब का करे जाय। दुलरवा केददा के तब चेत चढ़िस जब बेचा हांथ ले निकल गेय रिहिस। कभू ओहर बिचारय के सायेद नानपन म अपन भरम लमझय अऊ मौका परे ले दुलरवा ला कड़ा ले कड़ा सजा देवय।

एक दिन दुलरवा ला घर ले निकाल दीन। महतारी ला माय लागीस ओहर चोरा के थोर बहुत रुपया ओखर मेर अरवाइस, अऊ कहवाइस के ओहर अपन ममा घर चल देवय।

दुलरवा अपन ममा के घर चल देईस। ओहा उहों जादा दिन नई रहे सकीस। दुलरवा परवार ल छोड़ के दुरिहा चल दीस तब ओखरो मन म अपन परवार के मया हर बाढ़िस अऊ ओहर जादा दिन अपन परवार ले दुरिहा नई रहे सकीस।

दुनिया मं जुग-जुग ले चले आवत अऊ कभू नई बिगड़ैया रिवाज आय के समय निकल जाय ले मनखे मन पछताथें। दुलरवा ला गेय थोरकेच दिन बीते पाय रिहिस, फेर दुलरवा के ददा ला अखरे लागीस। अतेक पान के ओहर खाय पीये बर छोड़ दिस। आखरी म दाई के बलाय ले दुलरवा फेर घर लहुट आइस। दुलरवा के घर म पांव देते कका गुसिया गे। ओहर कहिस के दुलरवा हर अब ए घर म नई रेहे सकय। गोपी बाबू ला अबड़ेच पीरा होइस अऊ ओमन इही गांव म आके, घर बवा के रेहे लगीन।

गोपीनाथ ला संझा बिहिनिया चारों पहर दुलरवा के सुरता लागे रहय, गुनय के का जानी आघू चलके येहर का करही ? फेर भगवान के मरजी, इहीच फिकर म गोपीनाथ हर सये संसार ले रेंग दीस। दुलरवा ला लागीस के ओखर बाप के मरे के कारन ऊही हर आय। ओखर अंतरआतमा हर ओला किहिस। ओहर मनेमन परतिग्या करिस के अब ओहर कभू चोरी नइ करय।

अध्याय – दो


बबा के आंखी डबडबा गेय रिहिस। ओहर खखार के टोंटा ला सफा करिस। में हर त सन्ना गेय रहेंव। मोला दुलरवा के जिंदगानी के एक-एक ठिन गोठ हर आंखी के आघू म दिखे लागीस। बबा हर फेर केहे बर सुरू करिस।

महूं हर पहिली काहंव के दुलरवा हरनई सुधरय। पेर मेंहर बिचारंव तब मोर मन हर इही फैसला मा पहुंचिस के आखिर दुलरवा हर बिगड़िस काबर ? पियार के कमी मां। दुलरवा ला पियार मां नई भलूक मार-मार के सुधारे के कोसीस करे रिहिन हावंय अऊ ओखरे मारे ओहर आजाद होगे रिहिस। कहुं दुलरवा के घर के मन दुलरवा ल मारे के बलदा मा मया करे रहितिन तब दुलरवा नई बिगड़तीस। मोर खियाल मा त दुलरवा के करम मा इही सबो हर बदे रिहिस हगे, नई त छोटे होय ले सब्बो के मया पाय के हक ओला भगवान देय रिहिस हे। फेर ओला सबो नई मिलिस। ओहर इही मया ला पाय बर तरसय। फेर कखरो रोके ले समे के चक्कर ह तो नई रुकय।

थोकन दिन के गय ले दुलरवा के भइया डेरहा के बिहाव होगे। ओखह बिहाव गांव म होईस। दुलरवा हर अपन गवंहीन भौजी ला पहिली देखिस। फेर एक दिन भौजी हा ओला देत मूंड़ ढांक लिस तब दुलरवा के दिदी कमल हर किहिस – दीदी अरे ये हर त तोर देवर आय। तब भौजी हर किहिस – हहो देवर आय, फेर बड़े। इही गोठ ला सुनके दुलरवा ह मोहागे। काबर के ओला कभ्भू कोनों बड़े नई केहे रिहिन। दुलरवा के मन मा मबिली घांव के देखई मा भौजी के ऊपर अबड़ेच मया समागे। भौजी के आए ले दुलरवा के जिंदगानी म एक घांव फेर कातिक आगे। ओला भौजी ला कुड़कावब म अड़बड़ मजा आवय। ओहर उपदरवी रिहिस ना। ओहर जब नहीं तब अपन भौजी ला ‘गवंहीन भौजी’ काहय। ये हर त दुलरवा के बेअकल होय के साखी आय। फेर भौजी ला दुलरवा के इही गोठ ऊपर अबड़ेच रिस लागय। वो हर काहय – मेंहर कवंइहीन नों हंव। कहूं तुंहर हिसाब मा गंवई मं रहेच ले कोनों गवंइहीन हो जाथे त तेंहर बने कहथ हस। फेर मोर हिसाब मा दुम्हर ये सहरइया जिंदगानी ले कतको बने गवंइहा जिंदगानी हर आय। दुलरवा अऊ भोजी म इही गोठ ला लेके गोठ बात हो ाजय। ओ मन एक दूसर ऊपर रिस हो जांय पेर थोरकेच बेरा म एक बने बर लहुर तुहर करे लागय।

भौजी ला आय पंतरा दिन होय रिहिस। ओला लेगे बर ओखर भाई हर आगे। दुलरवा के मन नानुक होगे। ओला पीरा होय लागीस के भौजी हर चल दीही त ओखर हांसी खुसी चल दीही। अब काय करंव ? का कुछु उपाय नई ये अभी भौजी हा अऊ थोक बहुत दिन रुके रतिस। फेर दुलरवा के हुंसियारी हर एक दिन चलिस। काबर के ओहर केहे रिहिस हे के रेल हर एक घंटा लेट हावय, सिरतोन मां गाड़ी हर पन्दरा मिलिट लेट रिहिस। तौन पायके ओ दिन ओ मनला रुके बर परगे। आज सबो झिन हुसियार रिहिन हावंय। दुलरवा हर भजी मेर पहुंचगे फेर उहां भैया रिहिस हावय लहुट आइस। ओखर मन हा त रोतेच रिहिस फेर आंखी घलोक हर ओखर संग देत रिहिस। ओहर सुसकत रिहिस। भौजी हा जाय बर तियार होते रिहिस। भौजी हर टांगा मा गोड़ मढ़ाइस। दुलरवा हर चिचिया जारिस भौजी छूटे के बिचार मा अऊ रोत-रोत ओहर गोड़ मा चटक गे। भौजी हा ओला उठाइस फेर झझक के मारे कांही नई केहे सकीस दुलरवा ला, अऊ दुलरवा घलोक। भौजी चल दिस। दुलरवा के मन मां इही पन्दरा दिन मां अपन भौजी बर एक ठन सुंदर अकले ठौर बन गेय रिहिस।

दुलरवा हर थोक दिन ले अपन मन ला भुलवारत रिहिस। फेर ओखर जीव हा भौजी ला देखे बर उबुक-चुबुक होत रिहिस हावय अऊ तब ओहर बिन बताय भौजी के ममइके धमक दीस। ऊहागं ओहर भौजी के दरसन करिस। छाती जुड़ागे। ऊहां ओला आरो मिलिस के भौजी हर रईपुर जवइया हावय। ओला अड़बड़ पिराइस। ओहर भौजी झन जातिस कहिके भगवान के धियान करेय, फेर भौजी हा चलीच दीस। ओहर हार खाके लहुट आइस। ओला अपन जिंदगानी गरु लागे लागिस। ओहर कुछु करे नई सकय, अऊ ना कांही गुने सकय। सुन्न होके एती ले ओती भटके लागिस दुलरवा। फेर बिहिनिया करे रफे फूटीस ओखर मन मां अऊ ओला रद्दा दीखिस। ओहर अपन भौजी ला चिट्ठी लिखे के बिचारिस। ओहर चिट्ठी भेजीस। फेर जवाब नई आइस। ओहर मने मन मा बिचारय के भौजी अऊ मोर का नता हे ? अऊ हावय तौनो हर दिल के नोहे। ओहर त समाज के बनाय नेम आय तौने पाय के देखावा बने हावय। मोला दगा होय हे। ऐसने दुलरवा के मन मां रंग-रंग के गोठ आवय। का इहू भौजी हर अऊ दूसर भौजी मन असन आय य़ का मेंहर ओखर मन मां ठौर नई बनाय सकंव ? दुलरवा हर ऐखर पीछू घलोक अऊ चिट्ठी लिखीस। फेर जवाब नई पाए सकिस। दुलरवा के मन टूट गे रिहिस। ओला सबो हर देखाय के अऊ चोचला आय तैसे लागय। ओहर भौजी के बेवहार ल नई जाने रिहिस के भोजी हा ओला देवर आय कहिके अऊ नई तो कोनो कांही काहय झन कहिके मया करके गोठियाथे। धोखा गोहे हे मोला, हहो मोला धोखा देय हावय। काबर अइसना करीन ? मेंहर त वैसना मया ला आज ले नइच पाय रेहेंव अऊ मोर चाल पर गेय रिहिस फेर काबर मया ला बढ़ाइन। भौजी हर काबर मोला मया के समुन्दर मा बोरिस अऊ निकाल के फेंक दिस।

आठ महिना के बीते ले भौजी के पठौनी आनीन। भौजी फेर आगे। फेर दुलरवा अब मनटूटहा असन राहय। ओला मया नई करंय अइसना फेर लागे लागिस अऊ फेर अपन उही जुन्ना चाल कोती फिरे लागीस। ओहू हर थोक दिन बर काबर के दुलरवा के ये गुनई हर अर्रा निकलिस के ओला अपन कहवइया कोनों नइये। दुलरवा के मनहा जानय के ओहर अपन भौजी मेर ले मया पाय सकही। ओहर भौजीच ला अपन समझय अऊ ओला ओखर मन मां ठौर बनाना जरूरी हे। दुलरवा हा भौजी के मया ला सबो दिन बर पाय चाहत रिहिस।

दुलरवा अऊ भौजी जंवरिहा रिहिन। फेर माइ लोगन होयके मारे भौजी मा सियानी पना जादा रिहिस अऊ दुलरवा मां छोकरा आदत अब ले बांचे रिहिस। ओहर अभी चौदच बछर के रिहिस फेर ओमा उपदरव करे के आदत अबड़ेच भरे रिहिस। दुलरवा के इही उपदरव चाल के मारे भौजी के मन मां थोरको ठौर नइ रिहिस। काबर के भौजी हा पहिली पंदरा दिन रहि के चल देय रिहिस। फेर अब ओला दुलरवा के सबो चाल के बिसे म पता चलिस। ओहर संझा बिहिनिया दुलरवा के भइया मेंर काहय के मेंहर नई जाने सकत हौं के काबर तमन ये चोर, बदमास ला अपन संग मां राखे हावव। ये दुलरवा हा एको दिन तुमन ला जरूर धोखा दिही। डेरहा ला दुःख लागय। का करही दुलरवा हा ओखर मारे मोला का-का सुनेबर परही। फेर ओहा चुपे रहि जाय। ओला घड़ी-घड़ी हा खटकय के दुलरवा हा त ददा के मया बर सबो दिन लुलुवाइस फेर अब मोर छोड़ आसरा देवइया कोनोच नइये। बने होय के खराब होय अब त चलायच बर परही। भौजी हा दुलरवा ला घिनघिन त समझय फेर ये नई जानय के उही दुलरवा हा ओला कतक उंचहा मया करथे अऊ अपन मन मा बइठार लेय हावय।

दुलरवा के भौजी संग जम्भो मनटुटा होवय तब भौजी हर कहय, के हमरे मारे तैंहर लठिंगरा बने किंजरत हस अऊ हमरे संग लड़थौ। दुलरवा घलोक अपन रिस ला नई थामे सकय अऊ कही डारय – काहय हौ भौजी तुमन त चाहत हो के तुम्हर ऊपर ये बोझ हर परे हावय तेहर तुम्हर ओखी ले दुरिहा जावय। अतका दुलरवा कहि त दय। फेर ओला दुःख होवय के मेंहर काबर भौजी ला अइसना केहेंव। ओहा खुदे बेरा मां भोजी मेर पांव पलौटी करे बर पहुंच जाय। अऊ ओहा मान घलोक जाय।

दुलरवा बर भौजी के सुभाव ला समझना कठिन काम रिहिस। का जानी काबर ओहा दुलरवा ला पर समझय, नान-नान गोठ मा ओहा दुलरवा संग लड़ डारय। कहूं दुलरवा हा बात ऊपर बात कहय तभो भौजी के आंखी के आंसू के मोती असन चमकत बूंद-बूंद गिरे लागय अऊ दुलरवा हा ओला सूजी सूतरी मां गूंथे के कोसीस करय(भौजी ल मनाय बर धरय)। भौजी हा जर भूंजा जाय रिस मां। जब संझा इसकूल ले डेरहा हा आवय तब भौजी हा ओखर मेर दुलरवा के हिंता करय। पेर डेरहा के कान मां जूं हा नई रेंगय। डेरहा के अइसना बेवहार ला देख के भौजी हा उपास करेके परतिग्या करय। “माई लोगन के उपास हा घलोक अतेक ताकत वाला हे के बड़े-ब़े मनखे ओखर मारे पानी मांग डारथें।” तभी ले भौजी के मन हा जूड़ कैसे होवय, तब दुलरवा ला बलावय अऊ काहय – काय कहे रकहे रे ? तोला मोर नई त ओखर खियालात रखनाच चाहि। दुलरवा येहर तोर बर महतारी असन हावय तभो ले नई जानमव तेंहर काबर ओखर संग पड़थस। मोला तोर उप्पर भरोसा हे दुलरवा। अब तेंहर ओला हिंता करे के ओड़हर झन आन देबे। डेरहा के ये मया मार हा ओखर मन मां अपन जनम-जनम न मिटइया छापा बन गेइस। ओहा मन मां परतिग्या करिस के अब भजी ला हिंता करे के ओड़हर नई आवन देय।

धीरे-धीरे मां मया ला मया मिलिस। दुलरवा हा भौजी के मन मां ठौर बनाय बर कोसीस करतेच रिहिस, अऊ ओहर जइसनेच बिचारे रिहिस, तइसनेच होइस अऊ भौजी हा ओखरो ले जादा माने जतका मया बेटा हा महतारी मेर ले नई पाय सकय।

बबा हा किहिस – बाबू, दुलरवा हा मोर मेर काहय। कका मोला अतेक खुसा हावय के मेंहर तोला का बतावंव। आखिर मा भगवान हा मोर सुनिस त, फेर कका अइसे त नइ हो जाहि के मेंहर जतका खुस हावंव ओखर ले बड़का कहूं दुख पा जांव। कहूं भौजी हा मोला उही नरक मां त नइ ढकेल दीहि। जेमा मेंहर अपन जिंदगानी ला फोकट समझत रेहेंव। दुलरवा के ये गोठ मा मेंहर ओला धीरज बंधाय रेहेंव के दुलरवा एक त मया सबो ला मिलय नहीं अऊ मिल जाथे त सिरावय नइ। येह त भगवान के देनगी आय। दुलरवा हा भौजी के मया मां मुंड़ गोड़ ले अतक बुड़ गेय रिहिस के अब ओहा ओहर ओखर बिन नई रेहे सकतिस। अइसने समें मां भौजी के मइके ले जनेऊ के नेवता आइस अऊ भौजी ला नेवता मां जाना जरूरी रिहिस। ओहा गइस त दुलरवा के उछाह हर फेर खऊला गे। ओ हा मुंह ल ओथराय असन राहय। काबर के दुलरवा हा जब ले भौजी के मन मां बेटा कस मया के अंजोर ला देख डारे रिहिस, तभे ले ओखर सब्बो काम मा भौजी हा मदत देबेच करय। ओहा खावय नहीं जब ले भौजी हा नई परसे। फेर भौजी के जाय ले ओला सबो बखत भौजी के नई रहई खटकत राहय। ओहा रो डारय। भौजी तेंहर मोला छोड़के काबर गेय। का तेंहर नई जानत अस के तोर बिन दुलरवा हा खाय नई सकय।

बाबू मेंहर पहिलीच गोठिया डारे हावंव के दुलरवा के पिछु के जिंदगानी हा अबड़ेच सोगऊल रहिस हे ओखर बिसे में बताना कठिन हावय। दुलरवा के मन हा भौजीच ला बलावय। भौजी हा त अपन मइके मां मंजा से दिन ब्ताय बर गेय रिहिस हावय। ओहा का जानय के ओखर नानुक देवर हा जौन सब्बो समें अपने भौजीच मेंर रहना चाहथे, ओखर का होही, कइसे रहत होही। दुलरवा के हालत बड़ा सोगऊल रिहिस हे। वोहा रोगा के रोज सुखावन लागिस। ओहू हा का करय, लइका हा महतारी मेंर ले अलगे रहिके सुखाही नइ त का हरियाही। दुलरवा काहय हे परमेसर भौजी हा मोला छोड़ के चल दीस। कहूं मेंहर ओखरे बेटा होतेंव त का ओहर मोला अइसने छोड़ के जाय सकतीस ? नई ओहा कभू अइसना नई करे सकतीस, भगवान मेंहर मया मा अइसन अलगे रहवई ला नई चाहंव। मोला मया चाही। मोला बला ले भगवान तेमा मेंहर फेर जनम लेके भौजी मेर महतारी के मया ला पाय सकंव।

बाबू - दुलरवा के भौजी हा माई लोगन के गढ़न मां देवी रिहिस। ओहा दुलरवा ला घिनघिना के बदला मा मया करिस, अऊ दुलरवा हा उही मया के गोदी मा चिटिक सम्बलिस। तभो ले दुलरवा के मन मां आवय, भौजी के मइके जाय उप्पर ले गुनै दूसर भौजी मन कस मोरो भौजी तो नो हे। ओहा अपन अऊ भौजी के मया ला तौले। का मेंहर उच्चहा मया के हकदार हंव ? त ओला लागय के मोर असन ठलहा बर भौजी के मन मां ठौर होयच नई सकय। अइसना बिचार के आतेच वोहा रो डारय, अपन करनी ला बिचार के। हे भगवान महूं पढ़े लिखे होतेंव। बचपना मा बने ढंग लगा के पढ़तेंव त आज मेंहर अपना माय के पियास ला बुधाय बर आज अइसना नई तरसतेंव। सब्बो के मया हा आज मोला मिलतिस।

दुलरवा के भौजी हा ओला जिन्हय। वो हा बिचार करय के यहू घछला हा अपन गोड़ मा ठाड़ होय सकतिस। ओहू ला कखरो मदत के जरूरत नई परतिस। फेर अइसना गोठ मा त दुलरवा हा अपन भौजी संग पड़ डारय अऊ काहय के तें हर चहिथहस के येहू हा कमावय तेमा एला सोज रंग मा अलगे करत बन जाय, फेर मेंहर अलगे होवइया नोहंव। अइसना गोठ के बाद दुलरवा हो रोनहुत हो जाय। भौजी हा ओला समझावय फेर मनइया ये तेमा मानतिस। ओहा त खाय पिये बर छोड़ दय। अइसना मां भौजी घलोक रिसा जाय।

दुलरकवा हा एक दू दिन घर मां नई खावय अऊ भोजी मेर बोलय घलोक नहीं। डेरहा जब जानय त ऊहू ला अबड़च दुख होवय। ओहा आज ले तुलरवा ला कइसने कमती होयके बात नई होन देय रिहिस। ओमन ओला भूख मा नई राहन दंय। जइसना एक जिन नान्हें लइका के हुड़ई मा ओला समझाथें वइसने डेरहा हा दुलरवा ला समझावय। दुलरवा के हुड़ई हा ओखर मेर न नई चलय। ओला खायेच बर परय। अइसने मां भौजी के रिस हा तरपौंरी ले मुंड़ मां चढ़ जाय। वो हा डेरहा ऊपर घुसियाय। काबर तुमन ओला मनाथव “जतका बेर पेट मा मुसुवा कुदही” त खुदे खाही। डेरहा हा भौजी ला समझावय आघिर मा भौजी ला चुपे रेहे बर परय।

अध्याय - तीन


अब भौजी हा घलोक जान डारिस के दुलरवा के संग डेरहा के मारे ओहू ला मया देय बर परही। ओला अब मेंहर महतारी के मया ले अलगे नई राहन दंव। भोजी हा अब दुलरवा ला मन ले मया करे लागिस। भौजी अऊ दुलरवा के आपसी के ये मया हा अरोसी-परोसी के कलंक लगाय बर भरमहा मन के गोठ बनगे। ओमा दुलरवा के गलती हर रिहिस फेर ओहर कोनो बड़ारी बरम्हा त नो हे। ओहा का जानय के नानकुन गोंठ ला मइनसे मन अइसना बढ़ो-चढ़ो के हांसी के रद्दा निकाल लिहीं। ये बात के असली गोंठ ये रिहिस के अब दुलरवा हा अबन भौजी ला एक झिन बर नई छोड़ना चाहय। इही पाय के लोग मन ओमा खोट होही कहिके समझे लागिन। सब्बो गांव भर गोठहा पवन गढ़न बगर गे के हो न होय दुलरवा के ओखर भौजी संग गड़बडज़-सड़बड़ हे।

वाह रे समाज ते हा घलोक कतेक गिर गेय हावस। जऊन दुलरवा हा काली समाज बर कलंक रिहिस उही हा कहुं अब मया के ओघा मा अपन ला सम्हालत हे, तभो तुमन ला ओमा खोट दिखथे। फेर दुलरवा हा भौजी ला दाई कहिथे। का तुंहरमा अतको समझ नई ये।

ये गोठ हा डेरहा तीर पहुंचीस। पेर होहा दुलरवा अऊ ओखर भौजी दूनो ला बने ढंग से जिन्हय अऊ समझय। तऊने पाय अइसना गोंठ म धियान नई दीस। फेर जब भौजी आइस त गांव के माई लोगन मन के बताय ले उहू ला ये गोठ के पता चलिस। उहू ला अड़बड़ दुख होइस।

भौजी हा ये गोंठ होय के बाद दुलरवा संग थोकन झिझके असन बोलय। नई मालूम ओहा अपन न मां कोन आंधी लालुकाय बइठे रिहिस। ओहा दुलरवा ला सखोवय, दुलरवा तोर ये चाल मन बने नोहय, मोला त भऊख नइये त मोला खाय बर काबर बिटोथस, मेंहा नई चाहंव के तेंह मोला मनावस। दुलरवा तेंहा मोला कहूं के नई राहन दस। बस्ती के सब माई लोगन मन बर येहा बने बढ़िया असन गम्मत बन गेहे।

दुलरवा हा थोथना ला उतार दय। का भौजी ह मोर ऊपर काही किसिम के भरम करथे ? के ओहर ये समाज के बांधे के बेड़ी मां कसा जाय के कारन ले नई केरे सगय, के दुलरवा हा मोर बेटा आ। दुलरवा ला पियार अऊ मया के जरूरत हे अऊ ऐखर नई पाय पाय ले कहूं ओखर मन टूट जाही त दुलरवा हा जीयत नई रेहे सकय। दुलरवा ला सोज रद्दा मा लाने बर हे त ये समाज के कीरा मन कोती हमन ला देखना नई चाही।

भौजी हा दुलरवा ला समझावय, फेर दुलरवा ह मनइया नोहे! ओहर काहय भौजी, थोक बहुत दिन के मोर जिंदगानी बांचे हावय मोला अइसने तुमन के सेवा करन दव। कहूं तेंह मोला ये काम ले अलग करेके बिचार डारे हवव त ठुका बता मेंहर तोर आंखी ले जनम दिन बर दुरिहा हो जाहूं। दुलरवा के अइसना गोंठ ला सुन के भौजी हा कुछुक नई केरे सकय अऊ न दुलरवा च हा काहीं समझे सकय।

दुलरवा के भइया डेरहा हा बड़ सिधवा मनखे आय। ओकर चतका सादापन अऊ सियानी ऊपर ले देखे बर मिलय ओतकेच ओखर मन के भीतर घलोक रहिस। दुलरवा ला डेरहा हा बेटा असन मया देइस, इही मया म पले दुलरवा हा ओखरो नई सुनय। कहूं जेरहा हा थोरको रिस देखावय तो दुलरवा के लांघन सुरु हो जाय। ओला लाग के कहूं भइया घलोक त ओला अलगे नई कर देही। दुलरवा ल डर त लागय फेर ऊपर ले वहू हा नई गोठियावय। डेरहा दुलरवा ला नानापन ले जानत रिहिस हे। फेर दुलरवा हा छोटे भाई आय न तऊने पाय के खुदेच संग गोठियावय, दुलरवा हा भइया अऊ भौजी दुनो के मयारूक हो गे रिहिस।

धीरे-धीरे दिन रथिया, बीतिस अऊ कतको महिना बीत गे। डेरहा ला पेंशन मिले लागिस। डेरहा हा उही गांव मा एक ठन दूकान लगा लीस। दुलरवा अऊ डेरहा दोनों एके संग उहें कमाय लागिन। कभू दुलरवा अऊ डेरहा मा दूकान के नांब लेके बाताचीता हो जाय। दुलरवा हा छोकरपना के मारे भइया ला कुछु कांही कही डारय। फेर डेरहा घलोक हा मनखे के मुहरन मां देवता आय। वे हा बड़ धीर, अऊ समझदारी ले काम लेके दुलरवा ला सोजरद्दा में ले आवय।

दुलरवा ला मया मिलिस। जऊन दुलरवा एक ठन खुंदाय फूल रिहिस, अऊ जउन ला खूंदब मां सबोल मंजा आवय। फेर ओ होना घलोक त सच आयं के “कभू धूरा के घलोक दिन फरथे।”

दुलरवा हा अब अपन भइया संग कारोबार मां संग देय लागिस। अबत ओहा अड़बड़ खुस रहय। दुलरवा के सब्बो त बदलिस फेर ओहा अपन एकठन चाल ला नई सुधारे सकीस। ओहर आय भौजी संग रोजेच लड़ाई। ये लइका मन कस रोजेच के लड़ाई घलोक दुलरवा के दिन भर के बुता मां सामिल रिहिस। दुलरवा अऊ भौजी मा जभो बाताचीता होवय त सुनइया मन ला अइसे लागय केजइसना दू कोती लड़इया मन के जंग मा लड़ाई होते। फेर इही झगरा हा ओमन ला एक दूसर ला मया के डोरी कस के बांधय अऊ समझे के मौका देवय।

दुलरवा हा कभू अपन भौजी ला काहय के भौजी मेंहर जौन हावंव ते सबो हा तो आसिरबाद पाके ब ने हंव। देखत हस सब झिन मोला कतेक हलका समझंय। दुलरवा ला अपने मुंह म अपने बड़ई गोठियावत देखत भोजी हा काहय – कुकुर सहराय अपन पूंछी। अऊ उही उप्पर दुलरवा आऊ भोजी दूनो कठल-कठल के हांसय।

दुलरवा हा बीस बछर के हो गे रिहिस फेर ओखर त भइया अऊ भौजी ल छोड़ के कखरो धियानेच नई आवय। ओहा इदी दूनों झिन के भरोसा मां अपना बारह बछर ला बिता डारे रिहिस।

एक दिन दुलरवा हा अपन दूकाने म बइठे रिहिस। ठउका ओतकेच बेरा दूकान म एक झिन बुढ़वा मनखे आइस। ओहा आत साथ दुलरवा ल किहिस, बेटा डेरहा के इही दुकान हा आय। दुलरवा हा किहिस – हहो। ओहा उही मेर के खुसरी म बइंठिस, डेरहा के रद्दा देखत। डेरहा भइया आइस। ओहा दुरिहाच ले किहिस – रमई कका! कसगा कइसे आय हस ? अतका मा रमई कका हर किहिस – का बतावंव बेटा, मेंहर सोनकुंवर के बिहाव बर लइका खोजत-खोजत थकगेंव। फेर अभूले कोनों लइका मोर जनइक नई आइस। मेंहर गुनेंव के चलंव जेरहा मेर जावंव त ओकर ले कोनों ना कोनों लइका के पता चलिच जाही, इही पाय के मेंहर तोर मेर आय हवांव। अइसना गोठ ला सुन के डेरहा हर गांव के लकठा के एक दू झिन छोकरा मन के नांव ल बताइस, फेर रमई कका घलोक हा त नम्बरी घाघ आय। आखरी मा रमई कका हा दुलरवा के बिसे म डेरहा मेर गोठ चलीस। डेरहा हा कहीस – भई ओखर ऊपर मोर नहीं, भलूक ओखर भौजी के हक हावय। तऊन पायके एखर बारे में मेंहर तुमन ला काली बताहंव। रमई कका हा काली आहूं कहिके चल देइस।

संझा कन डेरहा ह दुलरवा के भौजी ला हांक पारिस – अरे सुनत हस, आज अनुपपुर के रमई कका आय रिहिस हे। भौजी किहिस – कोन रमई कका ? हां उही जौन हा हमन ला गया जी जात रेहेन तो रेलगाड़ी मा मिले रिहिन। डेरहा हा किहिस – हहो उही। ओखर चउदा बछर के छोकरी हावय। जेखर नांव हावय सोनकुंवर। भौजी हा संझोतेच मा कहि डारिस – अरे होलिया काबर बताथस, सोझ-सोझ कहना। हहो हहो सोज-सोज कारद हौं। वोहा तोर दुलरवा संग ओखर बिहाव करे चहथे, तोर का कहिना हे ? भौजी हा किहिस – भई दुलरवा हा त खुदे समझे के लाइक हावय। ओला छोकरी देखाय बर परही। त डेरहा हा किहिस – का दुलरवा हा छोकरी देखही। हहो काबर नई। डेरहा हा भौजी के केहे मुताबिक रमई कका ला किहिस। ओमन छोकरी देखाय बर मानगे।

बिहान दिन खाय के बेर भौजी हर दुलरवा ला किहिस – दुलरवा तोर बिहाव के गोठ बात करे बर रमई कका आय रिहिस हे। दुलरवा हा किहिस – त मेंहा काय करंव, आइस होही। भौजी हा किहिस – के तेंहर समझस कताबर नई दुलरवा। मेंहर त हहो कहि देंव। दुलरवा के मुंहर उतरगे। भौजी तेंहर मोला जियत नई राहन देस। का तोला मोह ऊपर थोरकोच सोग नई लागय। भौजी का मेंहर बिहाव नई करहूं त नई बनही अऊ दुलरवा हा भौजी के गोड़ मां मुंड़ ला दे देइस।

भौजी हरा समझावय के दुलरवा आखिर तोला बिहाव के नाव मां अतेक चिढ़ काबर हे ? फेर महूंत चाहत हौं के मोरो संग देवइया कोनो राहय। तहीं बता के महीं हर तोर कतेक चाकरी करत रहिहौं। का तेंहर मोला सुख नई देबे रे। भौजी के इही मया भरे गोठ मन दुलरवा ला बिहाव करे बर राजी कर देइन।

दुलरवा के मन हा बिहाव करेके बिचार ले अबड़ेच दुरिहा रिहिस। ओहा बिचारय के कहूं ओखर डउकी हा, असाध, लेदरी, मुँहफट, रिसहीन अऊ खरचीहीन होइस त जेखर भरोसा म ओहर जीये के आसरा पागेय उही हर मरे बर कर दीही। हे भगवान का बिहाव नई करे ले घलोक पाप होथे। का बिहाव हो जाय के बाद घलोक मेंहर अपन भइया भौजी के मया ल पाय सकहूं। नई, काबर के मेंहर देखे हावंव के बिहाव हो जाय ले मइनखे मन बदल जाथें। मेंहर देखे हावंव। ओमन अपन महतारी, बाप, भाई-बहिनी सबो ला भूला जाथें। इही पाय के दुलरवा हा बिहाव के नाव ले भागय।

अऊ दुलरवा हा इही फैसला उप्पर काहय अपन भौजी मेर, के भौजी मोला तोर पांव तरी जिंदगानी ला बितावतन दे। मेंहर एखरले अलग नई रहि सकंव। भौजी ह कहय, दुलरवा तेंहर कांही समझस काबर नई रे। मोला भरोसा हे को तोर घर वाली के आय ले मोर निभाव हो जाही। तेंहर अइसन काबर गुनखल रे बिहाव होयले तोला अलगे रहे बर परही। कहूं अइसना होय सकही। मेंहर तोर चाकरी करत हौं त का ओखर बलदा नई लेहंव, तोर ओखर मेर। कहूं तें खुदे अलगे रहे के गोठ करबे तभो मेंहर अइसना नई होवन दंव।

दुलरवा हा ये बिहाव के बिसे म अड़बड़ बिचार करिस। आखरी म इही बिचार करिस के भौजी के मन रखे बर ओला बिहाव करेच पर परही। चाहे ओला अब कतको मुस्कल काबर नइ आ परय।

दुलरवा हा भौजी के मन राखे बर अपन मन के गोठ ला टार दिस। छोकरी देखे बर दुलरवा अऊ भौजी दूनों गईन। जहाँ ले येमन पहुंचिन, रमई कका हा इंखर आवभगत सुरु करिस, अऊ उनला ओखर फल घलोक मिलिस। ओमन ला मन्झनियां खाय बर बलवाइन। दुलरवा अऊ भौजी एके संग खाय बर बैठिन। परोसे के बुता ला सोनकुंवर ऊपर छोड़े गिस। भौजी हा खायेच के बेर किहिस – ले दुलरवा बने देख ले नई त मोला भर ठोलत रहिबे। दुलरवा हा किहिस – भौजी तोर मन ले त मोला बिहाव करना हे। मोर मन के थोरै तेमा।

संझा दुलरवा अऊ भौजी दुनों झिन छकड़ा मां घर लहुटीन। रद्दा मां भौजी हा दुलरवा ला पूछिस – दुलरवा तोला बहुरिया मन आइस के नई आइस ? फेर दुलरवा हा कांही नई किहिस। भौजी हा फेर किहिस – दुलरवा देख तेंहा मोला झन पदो। मेंहर तोर मेर हारे बइठे हंव। तेहर त भइया हाथ जोर के पांव लागंव वाला हाना ला आगू करे बर चाहत हस। कइसनों होय आखिरी मां सोनकुंवर हा तोर घरवाली होही। का तेंहर मोला नई बताबे। दुलरवा हा किहिस – भौजी तेंहर फेर रिसाबे। दिरीं हा त अपन बात राखे बर मोला ये नरक मां ढकेलत हस। का तोला ये छोकरी हा बने लागिस। भौजी हा कुछु नई किहिस। बिचारे लागीस – आखिर ओकर छोकरपन हर कब जाही।
गोठिया न, का रिसा गेय भौजी। आखिरी मां भोजी ला बोलेच बर परिस। हहो छोकरी त सुन्दर हे अऊ मोन मन घलोक आगेय हावय। दुलरवा मन मां बिचारे लागीस। अघीर आघू चल के का हे अऊ का देखे बर परही ?

घर पहुंचतेच डेरहा हा किहिस – कैसे देख डारे देरानी। कैसना हावय, अरे महूंला त कांही बतावतव ? भौजी का किहिस – बने हे, फेर दुलरवा हा मोला बने ढंग के कांही नई बताइस। बिगन ओखर कहे हमन हहो कइसे काहन। डेरहा किहिस – वा भई तहूं का बने गोठ ला बताय, का दुलरवा हा तोर बात ला नई केहे सकही। मेंहर त आजेच रमई कका इहां खबर भेजत हौं के हमन तियार हन।

येती दुलरवा के मन मा बड़ोरा आय रिहिस। काम करय। ओला आगू के संसो हा खाय डारत रिहिस हे। इही संसो हा दुलरवा के छाती मां जघा बनाय लागीस। ओखर छाती मा उदुपहा पीरा उठगे। ओह तीन दिन ले कखरो संग गोठिया सके के ताकत नई।

भौजी हा दुलरवा ला मनाय के अड़बड़ बिघ करय फेर दुलरवा त बड़ टेकी रिहिस। ओहा मानबे नई करय। आखरी मां भौजी हा रिसागे, उहू ला दुलरवा के उपदरव के मारे छांव लागीस। ओहा रो डारिस अपन दुलरवा के हेकड़ई ऊपर।

दू, तीन दिन के गेय ले दुलरवा के तबीयत हा कुछुक सुधरिस दुलरवा हा त तीन दिन मां भौजी संग बने ढंग ले काहीं बोले घलोक नई सकिस। ओहर भौजी ला बलाईस । भौजी, ओ भौजी आना ना। भौजी हा भुकुवाय रिहिस। ओहा कहिस – काये, काये। भौजी आ न मोर तीर बइठ। फिर भौजी हा काहत चलदिस के मेंहर का करहूं डाग्डर मेंर जा। दुलरवा हा रो जारिस, आखिर मोर ठिकाना कहां हे। हे भगवान, मोला कहूं अब तेंह फेर भटकाय त... फेर तोरो फिकर नई ये मोला। मेंहर त भौजी के भरोसा...।

भौजी चल दिस त दुलरवा घलोक भौजी तीर जाके बैठगे, फेर भौजी हा नई गोठियाइस। मुक्की भौजी ला देख के दुलरवा हा रो डारिस। भौजी का तेंहर मोला जियन ननई देबे। भौजी हा दुलरवा के ये गोठ ला नई सुने सकिस उहू हा वइसने कहिस जौन ओतका बेर ओला कहिना ठीक रिहिस।

अध्याय – चार



दुलरवा के जिंदगानी के इही गोठ हा सब्बो के घर के गोठ बन गेय हावय। मेंहर त नई समझ पावंव। आखिस हांसे खाय के दिन मां ये दिन हा कहां ले आय। फेर घलोक गेय दिन हा एक ठन तिहार आय। इही दिन मनसे मन अपन मन के मइल ला निकाल के फैंक देथें। अऊ कहूं अइसना नई होतिस त मनखे झटकन मर जातिस। काबर के मन मा उठे बयार हा निकल जाथे अऊ एक-दूसर ला फेर मया करे लागते। उल्लूर परे बंधना हा फेर कसा जाथे। कहूं ओ बयार ला नई निकालय त ओहा मन मां रहिके दम ले सकत हे।

दुलरवा हा ठान लिस के ओहा भौजी ला कभू गलती बेवहार करके दुख नई होवन दय। भौजी के खुसी बर अपन मन के लालसा ला दबा दिस।

दुलरवा के बिहाव रमई कका के घर लगगे। येमन आंय तो साधारण खात पियत मनखे फेर अपन छोकरी मन ला पढ़ाई-लिखाई बर बने हरहिंछा छोड़ देय रिहिन। इंखर परवार हा विद्या के भंडार असन रिहिस। फेर विद्या के हरहिंछा के मारे सोनकुंवर के बिचार घलोक सुतंत्र हो गेय रिहिस। ओहा दूसर के भरोसा म जिअइला नई भाय सकत रिहिस। फे ओहर महतारी बाप के छोटे दुलौरिन बेटी आय। तऊन पाय के अबलेच मया मोह मां पले रहिस।

हां, त दुलरवा के बिहाव होगे। पहलीच रात के दुलरवा हा सोनकुंवर ला बताइस - ...सोनकुंवर तेंहर पढञे-लिखे समझदार हस। तोला सिख देवई हा बने नोहे, फेर तोला भौजी संग सच्चा पियार के बेवहार करे बर परही। ओला अपने महतारी बराबर मानबे अऊ ओहा जऊन बुता ला तिआरही तेला मोर तियारे आय समझके करे बर परही। सोनकुंवर तेंह ऐसे झन गुनबे के में हा तोला मया नई करंव। पेर मय हा सगर दिनेच भोजी के चाकर रहेंव। उही ला मोर असन गंवार ल सुधारे के बूता करे बर परिस हे। नई त ये दुलरवा हा आज नई जानंव कौन नरक मां सरत रहितिस। मोला भौजीच हा जिया दिस। सोनकुंवर हा दुलरवा के गोठ मां धियान नई दीस अऊ औ रात मा दुलरकवा हा सोनकुंवर के हहो नहीं ला नई समझे सकिस।

सोनकुंवर हा एक अठेरिया रिहिस, फेर नेंग असन ओला अपन मइके जाय बर परिस। सोनकुंवर हा जाय बर आघू दुलरवा मेर भेंट करे बर लौहाय रिहिस। अऊ ओती दुलरवा हा सोनकुंवर ला देखे बर तरसत रहिस। दूकान मां ओखर मन नई लागत रिहिस। ए दूनों झिन के तरसई के सोर कोनों ला नई रिहिस। फेर सच्चा पियार मां अतका बल होथे के ओहा बिन बताय चेहरा-मोहरा ले सबो झिन ल पता चल जाथे।

का होइस के दूकान मा एक झिन मनखए हा नून लेयबर आइस अऊ झोला ला देके कहिके चल दिस - भइया नून तउल के राख दे। मेंहा सागभाजी लेके आवत हंव। अऊ मनखे हा लहुट के आके अपन झोला ला मंगिस त ओहा ठाड़ सुखागे काबर के दुलरवा हा नुन छांड़ के ओखर बलदा मां दू सेर दार भर दय रिहिस। डेरहा के धियान ए कोती गिस। ओहा दुलरवा ला किहिस – दुलरवा तोला का हो गेय हावय। कहूं तोर देंह ह बने नइेय त घर जा, अऊ रमई कका ला टेसन अमरा देबे। काबर के हमर बैला-गाड़ी ला राधेबाबू ले गेय हावय।

दुलरवा हा झप के उठ गे फेर लजाके फेर उहीं मेर बइठ गे। तब डेरहा हा कहिस – जास काबर नई रे। दुलरवा कांही नई कहिस अऊ घर चल दिस।

दुलरवा हर घर पहुंचते देखिस के आघू मां भौजी ठाडे़ हावय। दुलरवा के उतरे मुंह ला देख के भौजी ह पूछिस – दुलरवा काये, देह बने नइये का ? अऊ भोजी हा दुलरवा के मुंह मं हांथ फिरोइस। दुलरवा हा सोनकुंवर मेर भेंट करे बर लहहाय रिहिस, फेर ओंखर भौजी के आघू ले उठे के हिम्मत नई होत रिहिस। काबर के येहा थोकन हलकापना असन लागथे के जौन भौजी ला ओहा दाई कहिथे ओखरे आघू मां सोनकुंवर...। दुलरवा बइठे रहिस।

रेल के बेरा होगे। रमई कका हा आके कहिस। अरे बडे़ बेटी अब काबर बेरा करत हव। रेल आय के बेरा त होगे। भौजी हा किहिस – हहो ठोका ताय, बेरा त कुछुके नइये। अऊ दुलरवा ला किहिस – दुलरवा जा बहू के संदूक ला उतार के ले आ। दुलरवा ह तुरते दौड़ीस। देखिस सोनकुंवर हा ओखर फोटु ला अपन छाती मां लगाय रोत रहिस। ओला अभोले नई जान परे रिहिस के ओकर पाछू मां दुलरवा ठाड़े हे। दुलरवा हा सोझे नई ठाड़े रही सकिस। ओहा झटकन संदूक ला उठाइस अऊ खाले लान के ठाड़ होगे। सोनकुंवर घलोक उतरिस। भौदजी के पांव परके ओहा टांगा मां बइठ गे। टांगा चले लगिस। दुलरवा ह बइठे तेखर पहिलिच रमई कका हा किहिस – बाबू चिट्ठी पत्री जरूर लिखहू। दुलरवा किहिस – चिट्ठी... हहां, हहो राजी खुसी के चिट्ठी। दुलरवा काहीं बैलय तेखर पहिलिच टांगा हा आघू रेंग गेय रिहिस। दुलरवा हा मन मां किहिस वाहरे जिपरहा डोकरा, तेहां मोला इही मेर ले बिदा कर देय, अऊ तोला मेंहर चिट्ठी लिखरूं।

दुलरवा के मन मां दुख रिहिस, फेर ओहा कोनो झन जानतीन कहिके गुनत रिहिस। एक दू दिन ओला सोनकुंवर के अडबड़ सुरता आइस। थोरकेच दिन बीते ले फेर ओहा अपन भइया भौजी के नांव जपे लगीस। ओला सोनकुंवर के मिलव हा सपना असन लागय।

येती सोनकुंवर हा घर पहुंचते चिट्ठी लिखिस। दुलरवा के हाथ मां जब चिट्ठी हा पहुंचिस त ओला पढ़े के ताकत नई चलिस। ओला ओहा खी सा मां धर लिस। काबर के डेरहा भइया ओ मेर बइठे रहिस।

दुलरवा हा बड़ परेशानी मां संझा के दरसन करिस। दूकान बंद कर के घर पहुंचिस अऊ सोझ अप खोली मां पहुंच गे। चिट्ठी ला पढ़े लागिस, ओला चिट्ठी मां अतेक मंजा आवत रिहिस। ये दुलरवा घलोक ठउका हे, रोज खाय बर देरी करथे, अपन संग मां ए चंडाल हा महूंला लांघन राखथे। दुलरवा हा चिट्ठी ला दसना में दाब के राख दिस। हांथ-गोड़ धोईस अऊ रंधनी घर मां पहुंचगे। काये भौजी, काये। मुसुवा कूदत हे पेट मां, अऊ गरीब ला गारी देत हस बिन कसूर के। ले परोस दे। भौजी हा दुलरवा बर खाय ल परसीस अऊ दुलरवा के आघू मां सरका दिस। ये काये, का तेंहा नई खावस। अरे खहूं नई त का तोहे गढ़न लांघन रहौं। तेंहा खा मेंहर थोकन बेरा ले खाहूं। दुलरवा ला काहीं समझ मं नई आत रिहिस। आखिर भौजी ला का होवत हे। दुलरवा हो डरिस – भौजी तेंहर अपन बर परस तभेच मेंहर खाहू ं। भौजी हा किहिस – अब मेंहर नहीं तोर दुलहिन हा तोर संग खाही। दुलरवा हा उठे लागय। अच्छा, बने हे, तेंहर खान नई दस तब नहींच सहीं। फेर भौजी ला वइसने ेबवहार करना परय। दुलरवा खावय मनटुटहा असन, अऊ भौजी घलोक।

दुलरवा हा खा के खटिया म लोटे रहाय। फेर ओला नींद नई आव। ओला भोजी के बदलई के मारे दुख लागय। हे भगवान तेंहर मोर बर का बिचारे हस, अरे बाता त दे, ये करमछंड़हा ला केती-केती धक्का खवा के जियाबे। पेर ये पथरा के छाती के, कहूं तेंहर मोला फेर ले दुख देय त मेंहर तोर हुकुम के बिना तोर दुवारी ला खटखटाहूं। मेंहर तोला अराम नई लेन दंव। बीस बछर ले त तेंहर मोला खेलौना बना के राखेय। फेर अब तेंहर मोरले नई खेले सकस, आखिर तोरो त छाती हे। अरे – तोर दरबार मां आके मेंहर तोरे आगू तोरे हिंता करव ये – हर बने बनही। थोरको त रस खा देउता मोर गरीब उप्पर...। दुलरवा रो डारय ओखर मन हल्का लागय अऊ ओहा हा सुत जाय।

दुलरवा मंझनिया घला खाय बर घर नई गईस। एती डेरहा हा खाय बर गिस त भौजी किहिस – दुलरवा ला भात खाय बर पठो देहव, ओरा चहा घला पी के नई गे हे। डेरहा हा दूकान मां पहुंचते दुलरवा ला खाय बर भेजिस।

भौजी, ये भौजी, अरे देना खाय बर भूख लागत हे। भौजी हा किहिस – आ गेय रे ऐंठुल, आज तेंहर चहा काबर नई पीए ? का तेंह गुनत रहे के महूं हा चहा झन पियंव। दुलरवा हा किहिस नई भौजी, भला मेंहा काबर अइसना चाहहूं। मेंहर त तुमनके मया मां बंधा के जीये सके हंव अऊ तुहीला लांघन राखे के मन... नई भौजी, नई, मेंहर अइसना कभूच नई गुने सकंव।

भौजी सच्ची बता आखिर तेंहर अइसना काबर गुन डारथस। भौजी हा किहिस – अच्छा चल पहिली खा त ले। दुलरवा खाय बर बइठिस। दुलरवा हा खातेचखात भौजी ला किहिस – भौजी मोला अइसे लागथे कहूं तेंहर मोला भूला देय त मेंहर कइसे जिए सकहूं, ये बिन ठिकाना के सनसार मां। फेर का तेंहर सबर दिन बर अपन ए गोड़ मां ठउर देय सकबे। काबर नहीं मेंहर तोला ओ बखत ले पहिलिच कहीं डारे हावं के मेंहर तोला अपन ले अलगे नई राखे सकंव, फेर कहूं तहींहा अलगे रहिहूं कहिबे त मोर का। नई भौजी, नई मेंहर तोरेच छांव मां अपन जिंदगानी ला पहा देहूं कहिके गुनथों अऊ भगवान, ला बिनोथंव के ओहर मोला भौजीच संग राखय। मोला सपना म घलोक अइसना झन दीखय के मोला भौजी ले अलगे होय बर परही।

येती सोनकुवर ला गेय छय महीना बीत गेय रिहिस। ये बीच मां सोनकुंवर के कई ठन चिट्ठी आइस। फेर दुलरवा हा एको ठन टिट्ठी के जवाब नई देय सकिस। सोनकुंवर के जम्मो चिटठी मां लिखे रिहिस के एक बेर तुमन आके अपन ऐ दासी ला दरसन देवव। मोला चौबीसों घंटा तुन्हर सुरता लागे रहिथे। तुमनला मोर किरीया है, अपत आहू। फेर दुलरवा हा ओती धियाने नई दिस, सोनकुंवर के गोठ कोती।

एक दिन उदुपहा तार आइस। लिखे रिहिस के दुलरवा ला झप के भेज दव। तार डेरहा ला मिलिस। ओहा दुलरवा ल झप ले जाए के तियारी करा दिस। दुलरवा हा ससुरार जाय बर िनकल परिस।

रेल अपन बेरा मा आगे। दुलरवा एक ठिन ठौर मां बइठ गे। येहा दुलरवा के पहिलीच मौका आय। अब ओहा थोक बहुत दिन बर भौजी मेर ले अलगे जात रिहिस। ओखर मन हा अभो भौजी के गोड़ में रिहिस। दुलरवा बिदा होईस तब भौजी के आंसू हा रुकतेच नई रिहिस।

संझा होइस। डेरहा हा दूकान बढ़ो के घर आइस। दुलरवा के भौजी ला दुवारी मा ठाड़े देख के अचंभा होइस। ओह किहिस – अरे आज का गोठये के तेंहर दुवार मेंरन ले आ गे हावस। भौजी हा मनटुटहा मन ले किहिस – का बतावंव, मोर दुलरवा हा ससुरार गे हे ना तऊने पाय के मोला घर हा सुन्ना लागत हे। डेरहा ठठा करिस – का बतावंव मोरो एको झन भौजी नई होइस, नई त महूं हा भौजी के मया पा के धन्न हो जातेंव। भौजी हा किहिस – टार तहूं घलोक हा, का उटपुटांग गोठ करत रहिथस।