Wednesday, May 2, 2007

अध्याय – छह

सोनकुंवर के ऊपर पहाड़ गिर परिस। ओखर मन हा भरभरागे। अपन परोसी मन कोती ले अपन ददा मेंर तार देके बिचारिस। काबर के सोनकुंवर हर पढ़े-लिखे रहिसे, तौने पाके ओला भरोसा रहिस, के ओहर अपन घर वाला ले अलगे रहिके घलोक जी खाही। जिहां ओखर मनखे ह दूसर के चाकरी करत हें। रात-रात भर तरसत रहिस। ओला एकै ठन रद्दा दिखिस के मोर इहां ले चलेच देवई म बने बनही।

येती दुलरवा घलोक रथिया भर नइ सुते सकिस। सोनकुंवर के बिचार ऊपर दुख होवत रिहिस। आखिर पक्का कर डारिस। हे भगवान, मोर अकिल काम नइ करत हे, काय करंव ? ये सबो ह भौजी के मारेच होइस। नई त मेंहर ये झंझट म काबर परतेंव। अभी त बछर दिन घलोक नई पूरे ये अऊ मोला दुिनया म मरे बर परत हे। सोनकुंवर चाहे मोर ले अलगे हो जाय। फेर मेंहर भौजी के जिन्दगानी ले कभू अलगे नई होय सकंव। चाहे मोला कतको दुःख काबर नई झेले ला परय। दुलरवा इही किसम के बिचारतबिचारत सुत गे।

अरे दुलरवा उठ ना, बिहिनिया हो गे ये, का तोला दूकान नई जाय बर हे। दुलरवा उठ त पहलिच ले गेय रहिस, ओहा उही मेंर ले चिचिआइस, आवत हौं भौजी। दुलरवा उतरिस अऊ बिन चहा पिए दूकान चल दिस। अड़बड़ बेरा होय के पीछू सोनकुंवर मेंर भौजी ह पूछिस – का दुलरवा हा अब ले सुतेच हे। सोनकुंवर हा पहलीच ले जरे भूंजाय बइठे रिहिस। ओहर कहिस – नई ओहा तुन्हर चाकरी करे बर गे हे। भौजी हा दंग रहिगे। हे बगवान, ये काये ये, सोनकुंवर अइसना आज काबर कहिस। ओमन धीर धर के कहिस – सोनकुवंर तोला अइसना करू गोठ नई गोठियाना चाही। का दुलरवा हा मोर चाकर आय। अऊ का कमाना हा चाकरी आय, फेर अइसनो त नो हय के दुलरवा च हा कमाथे। उहू मन रात दिन एती-ओती भटकत रइथे। अऊ भौजी हा रो डारिस। सोनकुंवर तोला अइसना नई कहना चाही, अऊ न अइसन बिचारना चाही। आखिर हमन बहनीच त होथेन। अऊ का ये हा बने आय के छोटे बहिनी हा अपन बड़े बहिनी ला बिन सोचे बिचारे कुछ कहि दय। सोनकुंवर मेंहर तोला अपन छोटे बहिनी समझत हौं। हहो कूहं मोर ले सिरतोनेच कांही गोठ हो गे होवय तब कहिबे... सोनकुंवर।

सोनकुंवर त भुंइया म नई रहिस, ओहा त आज बादर ला छू डारे बर चाहत रहिस। ओला डर रिहिस के दुलरवा ला, कोनो ओखर से लूट झन लंय। ओला घरवाला के मया कहूं नई मिलय।

ओहा किहिस – तेंहा का समझतहस, मेंहर उन्खरे सहीं निर-लठिंगरा नई औं। मेंहर तोला बने ढंग ले समझथ हौं। तेंहा मोर ओधा मा अपन सबो काम चलाना चाहत हस। अऊ अइसन रहिस हे त तें हा ओखर बिहाव काबर करे। तेंहा अपन तलब बर मोर जिन्दगानी अबिरथा कर देय।

अब भौजी हर समझगे। सोनकुंवर हा आखिर का कहना चाहत हे। ओहा कुछु नहीं कहिस अऊ अनपन खोली को दुआरी ला देके भीतरी मां जा के बइठ गे।

भौजी ला अबड़ेच दुख होइस। का ये सबो बने होत हे। दुलरवा त मोला महतारी कहिथे फेर नई अब मेंहर ओला कोनो हालत मां अपन संग नई राखे सकंव, चाहे काहीं हो जाय। मेंहर त ये मया मां त सरग-नरक दूनो ले चल देहों। भौजी हा ठान लिस के अब दुलरवा संग मां नई रेहे सकंव।

संझा होइस दुलरवा घर पहुंचिस। अरे भौजी, कहां हस, आज अब ले दिया नई बारे गेय हे ? का बात ये ? अरे भौजी केती हस। दुलरवा हा सब्बोक खोली मन ला देख डारिस फेर ओला सिरिफ सोनकुंवर हा दिखिस। दुलरवा हा पूछिस – भौजी कहां हे ? सोनकुंवर हा भौजी के नावेच मां उफना गे। का मेंहर घर के रखवार अंव, जेमा जानत रहेव के कोन केती हे अऊ कौन नई ये ?

दुलरवा हा हकबकाय ठाड़े रहिस। ओहा अपन खोली के कंडिल ला बारिस अऊ ओला धर के भौजी के खोली कोती गईस।

अरे भौजी, का हो गेय तोला, जऊन आज अपन दुलरवा ला बिन खवाय सूतत हस। भौजी हा काहीं निही गोठिआइस। अरे भौजी, गोठियाना का होगे हे।

भौजी हा अपन मन ला पथरा करके कहिस, दुलरवा तेंहर का मोला जियन नई दस।

काबर भौजी, दूसर के जीव देवइया के जीव ला कोनों काबर मांगही। अरे भौजी, कहूं तैं काहस अऊ भगवान हा मोर सुनय त मेंहर अप जिन्दगानी के एक-एक सांसा तोला दे दंव। फेर थोकन मेंहर अपने बर जरूर राख लेहूं, तेमां मरे के बेरा अपन भौजी के दससन करे सकंव।

भौजी हा दुलरवा के गोठ ला सुनके बिचापर मां उबुक-चुबुक होय लागिस। का दुलरवा हा मोर पथरा असन गोठ ला सुने सकही, अऊ का मेंहर कहे सकिहौं, तभो ले कहेय बर परही, ओमन सुनहीं त क कहहीं।

दुलरवा सुन, आज मेंहर तोर ले आखरी बखत एक ठन भीख मांगत हौं।

का भौजी तेंहर मोर दरिद्दर मेंर भीख मांगत हस। अरे हुकूम दे अपन बेटा ला।

दुलरवा मेंहर तोह महतारी अंव, ऐला तेंहर मानथस ना।

हहो काबर नई, एला त त गाँवभ जानत हे।

त मोर मन हे के तेंहर अपन ये महतारी ला कंलक लगब ले बंचा ले।

भौजी तोर असन बने, मयारुक अऊ सुग्घर चाल वाली ऊपर कलंक लगाय के काखर सकती हे्। सुरता राख भौजी तोर ऊपर कलंक लगवइया ला मेंहर त, मोला समझथस ना भौजी।

हहो दुलरवा, मेंहर समझत हौं। फेर मोर ऊपर कलंक लगवइया हर अपनेच आय तऊन पाय के ओला कांही कहवई सुनई हर बने नोहय। तैं नई जानत अस के आज तोर कारन मोर कतेक हिंता होइस हे। मोला त कोनों ला मुंह देखावब घला हा मुस्कुल होवत हे।

दुलरवा हा ननइक लइका- गढ़न रोवन लगिस, अऊ भौजी के गोड़ मां मुंड़ ला मढ़ा के कहे लगिस। भौजी कहूं मोर नांव लेके तोर हिंता होय रे त तेंहर मोला जऊन चाहथ सजा दे सकत हस।

दुलरवा के आंसू बूंद-बूंद बोहावत जात रिहिस हे। वोहा रुकतेच नई रहिस। जइसे समुन्दर ले अलग होवई ला नदिया हा नई सके सकत ये। ओहा मिले के आसरा मं बोहात जात होवय।

दुलरवा मेंहर चाहत हंव के तेंहर अब अपन घर ला अलगे कर ले। दूकान मां करहूंतें चाहस त अपन भइया के संग रहि सकत हस। फेर मोर संग अब कांही नता झन राखबे।

दुलरवा के कलेजा धकधकाय लगिस, मुंड़ ह किंजरे लगिस। ओहा कांही बिचारेच नई सकिस, ये का होगे अऊ का होही।

दुलरवा ह कहिस – भौजी तेंहर अइसना काहत हस जऊन हा मोला बिसवास देवाय रहे के दुलरवा मैं तोला अपन जीयत ले अलग नई करंव... भोजी तोला मोर दुलरवा के किरिया हे, मोर से का गलती होय हे... भौजी बता ना ?

दुलरवा हा नीनइक लइका असन भौजी के गोड़ मां परे-परे सुसकत रिहिस। अऊ भौजी के करेज्जा के कुटका-कुटका होत रिहिस। हो भगवान! तैं आखिर काय चाहत हस, बता दे ?

दुलरवा त कांहीच नई समझे पात रिहिस। ओला भौजी के हुकुम मानई जरूरी रहिस। दुलरवा हा भौजी के मान राखे बर अलगे रहवई ला ठऊका समझिस।

संझा होइस। डेरहा भइया घर आइस। ओला घर के रंग ढंग हा आज उपपुटांग लागिस। ओमन हांक पारिन – अरे दुलरवा, तोर भौजी कहाँ है ? दुलरवा ए दुलरवा... अरे तोला का होगे ?

भौजी हा कहिस – कांही नहीं, चलव खायबर परस देथंव।

का दुलरवा हा खा डारिस ?

मैं नई जानंव।

डेरहा ह फेर हांक पारिस – दुलरवा ए दुलरवा... ओती ले काहीं जवाब नई आइस त डेरहा हा भौजी ला कहिस – देख त दुलरवा हे धन नई ये। मोर बलाय ले त ओला अब ले आ जाना रिहिस।

भौजी मन के धुकधुकी बाढ़े लागिस कहूं दुलरवा... नइ ये, अइसना नई होय सकय। भौजी हा दुलरवा के खोली कोती गईस – दुलरवा ए दुलरवा... कोन सोनकुंवर, गा होगे... दुलरवा कहां हे ?

सोनकुंवर के घेंच हा रोत-रोत बइठ गेय रिहिस हे। कहिस दीदी, मैं नहीं जानंव ओमन कहां चल देय हें। मेंहर त समझत रहेंव के अब ले ओहर तुंहरे तीर होंही।

हे भगवान! ए मेंहर का कर डारेंव... अरे देखव त दुलरवा घर में नई ये, कहां गय ?

डेरहा हा कहिस – आ जाही, बइठे होही कोनों मेर। ओला भात ता खा लेना रिहिस।

भौजी हा कांही नई केहे सकीस। ओखर मन मां त धुकधुकी माते रिहिस। हे भगवान! मेंहा का कर डारेंव। भौजी.... अरे कौन दुलरवा, कहां गेय रेहे रे ? मेंहा त समझत रहेंव के मोर दुलरवा हा छोड़ के चल दिस...। नई दुलरवा तेंहा अइसना नई करे सकस। तेंहा मोह बिन कहूंच एक छिन नई रेहे सकस।

दुलरवा के भौजी का होगे दुमन ला, का मोला खाय बर नई दस।

भौजी हा जइसे जागिस... हहो! हहो आवथंव। भौजी हा डेरहा ला खाय बर परसिस... फेर खर मन हा दुलरवा बर छटपटावत रहिस, जइसे गाय हा अपन बछरू के नई दिखे ले ओखर बेचैनी मां गररैया देत होय। फेर भौजी हा त चिचिआय घला नई सकय।

ऐती दुलरवा हा मन मां उदास, हार मान के रथिया घर लहुटिस। बखरी के दुवारी बंद रिहिस। मन मां बिचारिस – काबर मंही कोनो कोती चल दंव – हहो मोर जवईच हा बने होही... फेर का मेंहर कभू अपन भऔजी के दरसन करे सकहूं... नई। काय करंवु... कांही बुझ नई परत ये। दुलरवा ला चक्कर आय लगिस अऊ उही मेर भुंइया मं गिर गे।

दुवारी के धक्का ला सुन के भौजी उठिस... सुनत हव, कोनो अभीच्चे दुवारी ला धकियावत रिहिस हे... उठव ना। डेरहा के नींद हा भन्नाय रिहिस। ओहर कहिस जाना दुलरवा आय होही। मोला सुतन दे।

भौजी उठिस अऊ ओहर कपाट ला उघारिस... अरे दुलरवा का होगे तोला बोलत काबर नई अस... दुलरवा अरे आवव ना, दुलरवा बिहुस परे हे... भगवान जानय कहां के नींद आय हे, अरे सुनत हौ।

ये कड़बड़ई चिचयई के गोहार ला सुन के डेरहा उठ गे। काये ? अरे दुलरवा का होगे – देखत का हस उचा ओला भीतर लेग चल।

भौजी अऊ डेरहा दुलरवा ला उठा के भीतरी मां लेगिन। डेरहा डाग्डर ला बलाय बर दंवड़िस। ऐती सोनकुंवर घलोक चचयई के गोहार ला सुन के आगे। ओहर दुलरवा के गोड़तरिया कोती ब इठ गे। काबर के सिराना मां बइठ के भौजी हा दुलरवा के मुंड़ ला दुलार कर के हाथ किंचारत रिहिस।

सोनकुंवर के मन हा भीतरे-भीतरे जलकुकड़ई के आगी मा बरे लगिस। एती त तुलरवा के तबियत बने नई रिहिस अऊ अइसनों मां घलोक सोनकुंवर के जलकुकड़ई। हे भगवान! तेंहर डउकी मन के मन मां ये काय भर देय। ओला बने खराब काहीं के चिन्हारी नई राहय। येहा बने आय के डउका मेंर डउकी के रहना जरूरी हे अऊ ओला रहिना भी चाही, फेर येह त बने नोहय के ये नाजुक बेरा म इर्सा करे लागय। फेर मोला त अइसे लागय के सोनकुंवर के खराब दिन आगे रिहिस। तऊने पायके त अइसना बेरा म घलोक ओखर मूंड़ मां रिस आऊ जलकुकड़ई के भूत चघे बइठे रिहिस।

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